Wednesday 31 May 2017

।। सूक्तयः ।।

!!!---: केन किं वर्धते :---!!!
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संस्कृत में सूक्तियाँ बहुत प्रसिद्ध है । ये गागर में सागर की तरह है । इनमें उपदेश भरा पडा है । जो ग्रहण कर सकता है, वह महान् हो जाता है, जो हँसी में टाल देता है, वह अधम हो जाता है । कितना अनुपम है संस्कृत वाङ्मय । देखिए एक झलक :----

सुचनेन मैत्री
शृंगारेण रागः
दानेन कीर्तिः
सत्येन धर्मः
सदाचारेण विश्वासः
न्यायेन राज्यम्
औदार्येण प्रभुत्वम्
पूर्ववायुना जलदः
पुत्रदर्शनेन हर्षः
दुर्वचनेन कलहः
नीचसंगेन दुश्शीलता
कुटुम्बकलहेन दुःखम्
अशौचेन दारिद्र्यम्
असन्तोषेण तृष्णा
इन्दुदर्शनेन समुद्रः
विनयेन गुणः
उद्यमेन श्रीः
पालनेन उद्यानम्
अभ्यासेन विद्या
औचित्येन महत्त्वम्
क्षमया तपः
लाभेन लोभः
मित्रदर्शनेन आह्लादः
तृणैः वैश्वानरः
उपेक्षया रिपुः
दुष्टहृदयेन दुर्गतिः
अपथ्येन रोगः


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