Tuesday 8 November 2016

ब्राह्मण-ग्रन्थों का परिचय


!!!---: ब्राह्मण-ग्रन्थ :---!!!
=========================
www.vaidiksanskrit.com

(1.) ब्राह्मण शब्द का अर्थ
+++++++++++++++

ब्राह्मण शब्द की व्युत्पत्तिः---
**********************

ब्राह्मण शब्द "ग्रन्थ" का वाचक है और यह नपुंसकलिङ्ग में होता है---"ब्राह्मणं ब्रह्मसंघाते वेदभागे नपुंसकम्।" (मेदिनी कोश) । "एतद् ब्राह्मणान्येव पञ्च हवींषि ।" (तैत्तिरीय-संहिता---३.७.१.१) । ब्राह्मण शब्द में ब्रह्मन् मूल शब्द है, इससे अण् प्रत्यय करके ब्राह्मण शब्द बनता है। ग्रन्थ अर्थ में "ब्राह्मण" शब्द की तीन प्रकार से व्युत्पत्ति दिखाई जाती हैः---

(1.) शतपथ-ब्राह्मण (7.1.1.5) के अनुसार "ब्राह्मण" शब्द का अर्थ "मन्त्र" हैः---"ब्रह्म वै मन्त्रः"। अतः वेदमन्त्रों की व्याख्या और विनियोग प्रस्तुत करने वाले ग्रन्थ को "ब्राह्मण" कहते हैं।

(2.) शतपथ-ब्राह्मण (3.1.4.15) के अनुसार ब्राह्मण शब्द का दूसरा अर्थ "यज्ञ" हैः--"ब्रह्म यज्ञः"। अतः यज्ञों की व्याख्या और विवरण प्रस्तुत करने वाले ग्रन्थ को "ब्राह्मण" कहते हैं।

(3.) ब्रह्मन् शब्द का एक अन्य अर्थ है--पवित्र ज्ञान या रहस्यात्मक विद्या। अतः जिन ग्रन्थों में वैदिक रहस्यों का उद्घाटन किया गया है, उन्हें "ब्राह्मण" कहते हैं। इन ग्रन्थों में यज्ञों का आध्यात्मिक, आधिदैविक और वैज्ञानिक स्वरूप प्रस्तुत किया गया है।

सत्यव्रत सामश्रमी के अनुसार ब्राह्मण शब्द से प्रोक्त (कथित, वर्णित) अर्थ में अण् प्रत्यय करके ब्राह्मण शब्द बनता है। (ऐतरेयालोचन) इसका अभिप्राय है कि ब्राह्मणों द्वारा यज्ञ-विषयक व्याख्यारूप में निर्मित ग्रन्थों को "ब्राह्मण" कहते हैं---"ब्राह्मणं नाम कर्मणस्तन्मन्त्राणां च व्याख्यानग्रन्थः ।" (भट्ट-भास्कर का भाष्य--तै.सं.---१.५.१)

ब्राह्मण का अर्थः---
================

मीमांसा-दर्शन का कहना है कि मन्त्रभाग या संहिताग्रन्थों के अतिरिक्त वेद-भाग को "ब्राह्मण" कहते हैं----"शेषे ब्राह्मणशब्दः।" (मीमांसा-2.1.33) इसका अभिप्राय यह है कि संहिता भाग में पद्य, गद्य या गीति रूप में मन्त्र हैं, उनके अतिरिक्त व्याख्या-ग्रन्थों को "ब्राह्मण" कहते हैं। भट्ट भास्कर का कहना है कि कर्मकाण्ड और मन्त्रों के व्याख्यान ग्रन्थों को "ब्राह्मण" कहते हैंः---
"ब्राह्मणं नाम कर्मणस्तन्मन्त्राणां व्याख्यानग्रन्थः।" (तै.सं.भाष्य-1.5.1)

वाचस्पति मिश्र ने वर्ण्य-विषयों का निर्देश करते हुए कहा है कि "ब्राह्मण" उन ग्रन्थों को कहते हैं, जिनमें निर्वचन (निरुक्ति), मन्त्रों का विविध यज्ञों में विनियोग, प्रयोजन, प्रतिष्ठान (अर्थवाद) और विधि का वर्णन होता हैः--

"नैरुक्त्यं यत्र मन्त्रस्य विनियोगः प्रयोजनम्।
प्रतिष्ठानं विधिश्चैव ब्राह्मणं तदिहोच्यते।।"

ब्राह्मण और अनुब्राह्मणः---
======================

ग्रन्थ अर्थ में ब्राह्मण शब्द नपुंसकलिंग में तथा मनुष्य अर्थ में पुल्लिंग में होता है। ग्रन्थ अर्थ में इसका विभिन्न स्थलों पर प्रयोग हुआ है, जैसेः---अष्टाध्यायी--4.3.105, निरुक्त--4.27, शतपथ-ब्राह्मण--4.6.9.20 और ऐतरेय-ब्राह्मण-6.25 आदि। इसका बहुवचन "ब्राह्मणानि" शब्द का प्रयोग तैत्तिरीयारण्यक (2.9.1, 2.10.1, 2..11.1) में प्राप्त होता है।

अष्टाध्यायी की वृत्ति "काशिका" (4.2.62) में "अनुब्राह्मण" शब्द का प्रयोग हुआ है--"ब्राह्मणसदृशोsयं ग्रन्थोsनुब्राह्मणम्।"। आर्षेय ब्राह्मण में भी अनुब्राह्मण शब्द का प्योग किया गया है। इसके अतिरिक्त आश्वलायन श्रौतसूत्र और वैतान श्रौतसूत्रों में भी अनुब्राह्मण ग्रन्थों का उल्लेख हुआ है। यह अनुब्राह्मण लघुकाय ब्राह्मण ग्रन्थ हैं। इनमें किसी एक अंश की ही विवेचना प्राप्त होती है।

मन्त्र और ब्राह्मणः---
===================

संहिताओं और ब्राह्मण-ग्रन्थों का स्वतन्त्र अस्तित्व है। संहिताओं में उपलब्ध मन्त्रभाग का कर्मकाण्ड में विनियोग होता है। ब्राह्मण-भाग मन्त्रों के विनियोग में विधि बताता है। एक मूल है तो दूसरा उसका व्याख्यान ग्रन्थ है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। "वेद" शब्द मुख्य रूप से वैदिक-संहिताओं का ही वाचक है, ब्राह्मण-ग्रन्थों का नहीं। वैदिक-वाङ्मय या वैदिक-साहित्य में ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषदों का भी समावेश है। वेद शब्द का गौण अर्थ वैदिक-साहित्य लेने पर ब्राह्मण ग्रन्थों को भी वेद कहा जा सकता है। इसी गौण अर्थ को लेते हुए "मन्त्रब्राह्मणयोर्वेदनामधेयम्" (आपस्तम्ब श्रौतसूत्र-1.33) कहा गया है। यह उक्ति सम्प्रति बहुत प्रचलित हो गई है। यह एकांगी प्रयोग है । स्वामी दयानन्द सरस्वती इसे नहीं मानते । हमने इस पर एक बृहद् लेख कई भागों में प्रमाण सहित लिखा है । आप इसे इसी पेज पर पढ सकते हैं ।

इसका अन्य स्थलों में भी बहुत प्रयोग हुआ हैः---आपस्तम्ब श्रौतसूत्र--24.1.31, बौधायन गृह्यसूत्र-2.6.3, कौशिक सूत्र-1.3, तन्त्रवार्तिक-1.3.10 और शांकभाष्य (वेदान्त-दर्शन-1.3.33) आदि। आश्वलायन ने ऋषि और आचार्य में अन्तर बताया है । तदनुसार ऋषि मन्त्रद्रष्टा होते हैं, जबकि आचार्य ब्राह्मण-द्रष्टा । इन आचार्यों के तीन गण उपलब्ध होते हैं---(१.) माण्डूकेय गण, (२.) शांखायन गण, (३.) आश्वलायन गण ।
कुछ आचार्यों के नाम इस प्रकार है---कहोल, कौषीतकि, महाकौषीतकि, भरद्वाज, पैङ्य, महापैङ्य, सुयज्ञ, शांखायन, ऐतरेय, बाष्कल, शाकल, गार्ग्य, सुजातवक्र, औदवाहि, सुजामि.शौनक, आश्वलाय ।

मन्त्रों और ब्राह्मणों में मौलिक भेद है। जैसे--भावभेद, रचना-भेद, विषय़-भेद और प्रक्रिया-भेद। इसलिए वास्तविक दृष्टि से ब्राह्मणों को वेद कहना अनुपयुक्त है। गौण अर्थ में ही वेद में उसका समावेश संभव है।



ब्राह्मण-ग्रन्थों की भाषा-शैलीः----
========================

संहिता-ग्रन्थ की अपेक्षा ब्राह्मणों की भाषा प्रसादगुण बाहुल्य है। भाषा सरस, सरल और रोचक है। इनमें वर्ण्य विषय की दुरुहता दूर की गई है। इनमें लम्बे समासों , क्लिष्ट पदों और अस्पष्टार्थक शब्दों का प्रयोग नहीं किया गया है। शैली प्रवाहयुक्त और रोचक है। विविध आख्यानों के प्रसंग में शैली की रोचकता दर्शनीय है। ब्राह्मण वैदिक और लौकिक संस्कृत को जोडने की कडी है। यज्ञिय, दार्शनिक एवं गूढ प्रसंगों को भी सरस, सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है।

ऋषि और आचार्य में भेदः---
========================

आश्वलायन गृह्यसूत्र (3.3) में ऋषि और आचार्य में भेद किया गया है। ऋषि मन्त्रद्रष्टा को कहते हैं और आचार्य ब्राह्मण-ग्रन्थों के द्रष्टा या रचयिता को कहते हैं। अत एव आश्वलायन गृह्यसूत्र में ऋषि-तर्पण के साथ ही आचार्य-तर्पण का भी उल्लेख है।

ब्राह्मण-ग्रन्थों का प्रतिपाद्य विषयः-----
========================

ब्राह्मण-ग्रन्थों का मुख्य प्रतिपाद्य विषय हैः---यज्ञ एवं यज्ञ का सर्वाङ्गीण विवेचन। यज्ञ-मीमांसा के दो भाग हैं----विधि और अर्थवाद। (1.) विधि का अभिप्राय है---यज्ञप्रक्रिया का विशद निरूपण। जैसे यज्ञ कब, कहाँ और कैसे किया जाए। यज्ञ में कितने ऋत्विज् होने चाहिएँ प्रत्येक के क्या कर्त्तव्य हैं। यज्ञ के लिए क्या-2 सामान चाहिए, यज्ञशाला का निर्माण आदि। आपस्तम्ब श्रौतसूत्र का कहना है---"कर्मचोदना ब्राह्मणानि।" अर्थात् ब्राह्मण-ग्रन्थ विविध यज्ञरूप कर्मों में मनुष्यों को प्रेरित करते हैं। (2.) अर्थवाद का अभिप्राय है ---स्तुति या निन्दापरक विविध विषय।

वाचस्पति मिश्र के अनुसार ब्राह्मण-ग्रन्थों के चार प्रयोजन हैं---
(1.) निर्वचनः--शब्दों की निरुक्ति बताना। (2.) विनियोगः--किसी यज्ञ की किस विधि में किन मन्त्रों का पाठ किया जाना चाहिए, यह विनियोग के द्वारा ज्ञात होता है। (3.) प्रतिष्ठानः--इसका अर्थ है अर्थवाद। यज्ञ की प्रत्येक विधि का क्या महत्त्व है, इसके करने से क्या लाभ है और न करने से क्या हानि है, इनको बताना। (4.) विधिः---यज्ञ और उससे सम्बद्ध कार्यकलाप का विस्तृत विवरण बताना।

"नैरुक्त्यं यत्र मन्त्रस्य विनियोगः प्रयोजनम्।
प्रतिष्ठानं विधिश्चैव ब्राह्मणं तदिहोच्यते।"

शबर स्वामी के अनुसार ब्राह्मणग्रन्थों के 10 प्रयोजन हैं----

"हेतुर्निर्वचनं निन्दा प्रशंसा संशयो विधिः।
परक्रिया पुराकल्पो व्यवधान-कल्पना।
उपमानं दशैते तु विधयो ब्राह्मणस्य वै।।"
(मीमांसा, शाबरभाष्य--2.28)

(1.) हेतुः---यज्ञ में कोई कार्य क्यों किया जाता है, इसका कारण बताना।

(2.) निर्वचनः---शब्दों की निरुक्ति बताना।

(3.) निन्दा---यज्ञ में निषिद्ध कर्मों की निन्दा करना। जैसे---यज्ञ में असत्य-भाषण निषिद्ध है। यदि कोई यज्ञशाला में असत्य बोलता हो, तो उसकी निन्दा करना।

(4.) प्रशंसा---यज्ञ में विहित कर्मों की प्रशंसा करना। जैसे---"यज्ञो वै श्रेष्ठतमं कर्म।" अर्थात् यज्ञ श्रेष्ठ कर्म है। इसलिए अवश्य करना चाहिए। इस प्रकार यज्ञ की प्रशंसा करना।

(5.) संशय---किसी यज्ञिय कर्म के विषय में कोई सन्देह उपस्थित हो तो उसका निवारण करना।

(6.) विधिः----यज्ञकर्म सम्पूर्ण विधि के अनुसार होना चाहिए। कौन-सा कार्य पहले किया जाए तथा कौन-सा कार्य पश्चात् किया जाए, इसका विवरण प्रस्तुत करना।

(7.) परक्रिया---इसका अर्थ है कि परार्थक क्रिया, परहित या परोपकार वाले कर्त्तव्य। धर्मार्थ कार्य कूप, तालाब आदि बनवाना।

(8.) पुराकल्पः---यज्ञ की विभिन्न विधियों के समर्थन में किसी प्राचीन आख्यान या ऐतिहासिक घटना का वर्णन करना।

(9.) व्यवधान-कल्पनाः---परिस्थिति के अनुसार यज्ञीय-कर्म की व्यवस्था करना।

(10.) उपमानः---कोई उपमा या उदाहरण देकर वर्ण्य विषय की पुष्टि करना।

ब्राह्मण-ग्रन्थों में विधि और अर्थवाद के अतिरिक्त "उपनिषद्" का भी प्रतिपादन किया गया है। ब्राह्मणों में यज्ञ आदि की आध्यात्मिक, दार्शनिक और वैज्ञानिक व्याख्याएँ भी प्रस्तुत की गई हैं। यज्ञ केवल कर्मकाण्ड नहीं है, अपितु सृष्टि-विद्या का भी प्रतीक है। इसके द्वारा सृष्टि के गूढ रहस्यों को स्पष्ट किया गया है।



विषय-वस्तु---
====================
इसके अन्तर्गत हम ६ प्रकल्पों पर विचार करेंगे ।

(१.) विधि (कर्मविधान)
====================

विधि से अभिप्राय है कि यज्ञों के अङ्गों तथा उपाङ्गों के अनुष्ठान की प्रेरणा देना । सभी ब्राह्मणों में विधि-वाक्यों का उल्लेख विधिलिङ् अथवा लट् लकार की क्रिया के द्वारा हुआ है । जैसे----यजेत, कुर्यात्, जुहोति इत्यादि । ताण्ड्य-ब्राह्मण (६.७) में अध्वर्यु, प्रस्तोता, उद्गाता, प्रतिहर्त्ता एवं ब्रह्मा इन पाँच ऋत्विजों के प्रसर्पण की विधि है कि वे एक-दूसरे की पीछे एक पङ्क्ति में मौन रहकर चलें । इसका अतिक्रमण नहीं होना चाहिए , अन्यथा अनिष्ट होगा ।

वैदिक-यज्ञों का अनुष्ठान विधियों पर ही आश्रित है । अग्निहोत्र, दर्श-पौर्णमास, राजसूय आदि सभी यज्ञों में विधि-वाक्यों की आवश्यकता है । विभिन्न ब्राह्मणों के विधि-वाक्यों में कभी-कभी एक ही विषय पक परस्पर विरोध भी मिलता है, जो शाखा-भेद, देश-भेद या काल-भेद के कारण है ।

(२.) विनियोगः---
====================

विनियोग से अभिप्राय है कि वैदिक मन्त्रों का यज्ञ में उपयोग । इसे ही विनियोग कहते हैं । ब्राह्मण-ग्रन्थों में अपनी-अपनी शाखा की संहिताओं में संकलित मन्त्रों का क्रमशः विनियोग बताया गया है कि अमुक मन्त्र या मन्त्र-समूह का इस स्थान पर पाठ हो । कहीं-कहीं विनियोग मन्त्रार्थ के अनुकूल दिया गया है तो कहीं-कहीं मन्त्रार्थ और विनियोग के बीच कुछ अन्तराल प्रतीत होता है । ये विनियोग ऋषियों द्वारा ही निश्चित है । ब्राह्मण-ग्रन्थों ने मन्त्र के पदों से ही विनियोग की युक्तिमत्ता सिद्ध की है । किन्तु आजकल सामान्य जन भी इसका विनियोग करने लग गए हैं , जो अनर्थक है ।

विनियोग पर क्या पौराणिक और आर्य समाजी सभी अपने-अपने मन से विनियोग करने लग गए है । जो उचित नहीं है । दोनों समुदायों में इस समय बहुत से गलत विनियोग किए जा रहे हैं । आप उदाहरण मन्त्र सहित यह लेख इस लिंक पर पढ सकते हैं-------

(३.) हेतु---
===========

"हेतु" से अभिप्राय उन कारणों के निर्देश से है, जिसे कर्मकाण्ड की विशेष विधि के लिए उपयुक्त बतलाया गया है । ब्राह्मण-ग्रन्थों में यज्ञ के विधि-विधान के निमित्त उचित तथा योग्य कारण बताया गया है । एक उदाहरण देखिए---

अग्निष्टोम याग में उद्गाता "सदस्" नामक मण्डप में औदुम्बर वृक्ष की शाखा का उच्छ्रयण करता है । इस विधान का कारण है कि प्रजापति ने देवताओं के लिए ऊर्ज का विभाग किया----(ताण्ड्य-ब्राह्मण-६.४.१) उसी से उदुम्बर वृक्ष की उत्पत्ति हुई । इस प्रकार उदुम्बर वृक्ष का देवता प्रजापति है । उद्गाता का भी सम्बन्ध प्रजापति से ही है । इसीलिए उद्गाता उदुम्बर की शाखा का उच्छ्रयण का कार्य अपने प्रथम कर्म से करता है । इसके अतिरिक्त इस अवसर पर प्रयुक्त होने वाले उच्छ्रयण मन्त्र की भी व्याख्या विस्तार से की गई है ।

इस प्रकार हेतुवचन प्रस्तुत करने से पाठकों को अनुष्ठानों के कारण का स्वयं परिचय मिलता है तथा समधिक श्रद्धा का उदय होता है ।

(४.) अर्थवादः---
=============

अर्थवाद से अभिप्राय है---स्तुति और निन्दा के वचन । यज्ञ के अनुष्ठानों की प्रशंसा या अविहित कर्मों की निन्दा करना साभिप्राय है । अग्निष्टोम की प्रशंसा में कहा गया है कि इसके अनुष्ठान से सभी कामनाओं की पूर्ति हो जाती है । इससे यजमान इन कार्यों में आकर्षित होते हैं । इसी प्रकार निषिद्ध-कर्मों की निन्दा भी की गई है । जिससे यजमान निषिद्ध-कर्म न करें । "अमेध्या वै माषाः" । (तै.सं. ५.१.८.१) इस वाक्य के कारण यज्ञ में उडद का प्रयोग कभी भूलकर भी न करें , क्योंकि इससे हानि होती है ।

(५.) निरुक्ति (निर्वचन)---
====================

निर्वचन (व्युत्पत्ति) से अभिप्राय है कि किसी शब्द का विश्लेषण करके उसे सम्बद्ध क्रिया-पद से जोडना । निरुक्ति का आरम्भ तो वेदों से होता है , किन्तु ब्राह्मण-ग्रन्थों में निरुक्तियाँ भरी पडी हैं । आगे चलकर इस विषय पर ग्रन्थ ही लिख दिए गए, जैसे--निरुक्त । सम्प्रति उपलब्ध निरुक्त के कर्त्ता आचार्य यास्क बारम्बार ब्राह्मण-ग्रन्थों की निरुक्तियों को उद्धृत करके लिखते हैं--"इति ह विज्ञायते" । एक निरुक्ति आचार्य की देखिए---"आचार्यः कस्मात् ?"--- आचारं ग्राहयति । आचिनोति अर्थान् , आचिनोति बुद्धिम् इति वा ।" (निरुक्त---१.४) पृष्ठ---२६)


(६.) आख्यानः---
=============

आख्यान से अभिप्राय कथा से है । कथा के माध्यम से यज्ञ में यजमान को श्रद्धा कराना मुख्य उद्देश्य है । इसके अन्तर्गत किसी यज्ञ के प्रचलन के क्या उद्देश्य हैं और किसी यज्ञ की क्या विधि है---इन्हें स्पष्ट करने के लिए आख्यानों का सहारा लिया जाता है ।

इसके अन्तर्गत दो प्रकल्प होते हैं---परक्रिया और पुराकल्प । (१.) किसी एक व्यक्ति के विषय में मुख्यतः प्रधान श्रोत्रियों और याज्ञिकों द्वारा किए गए विशिष्ट यज्ञों का या राजाओं के दानादि का वर्णन करना "परक्रिया" है ।

(२.) प्राचीन युगों के यज्ञों एवं दूसरी कथाओं का विवरण "पुराकल्प" है । पुराकल्प के प्रथम वाक्यों में प्रायः यह वाक्य कहा जाता है---"इति ह आख्यायते ।"

ब्राह्मण-ग्रन्थों में छोटे-बडे अनेक आख्यान भरे पडे हैं । देवताओं के द्वारा किए गए प्राचीन यज्ञों का वर्णन इनमें प्रधान हैं । ऐतरेय-ब्राह्मण का "शुनःशेप-आख्यान" लोकप्रसिद्ध है । यह अपेक्षाकृत बडा आख्यान है । अन्य आख्यान हैं---"पुरुरवा-उर्वशी", (शतपथ-ब्राह्मण---११.५.१), जलप्रलय का आख्यान (शतपथ-ब्राह्मण---१.८.१) । "वर्णोत्पत्ति-आख्यान" (ताण्ड्य-ब्राह्मण---६.१) वाक्-आख्यान" (ताण्ड्य-ब्राह्मण---६.५.१०--१२) "अग्निमन्थन-आख्थान" (शतपथ-ब्राह्मण---१.६.४.१५), देवासुर-संग्राम" (ऐतरेय-ब्राह्मण---१.४.२३.और ६.२.१) (शतपथ-ब्राह्मण---३.१.६.८) इत्यादि ।

ब्राह्मण-ग्रन्थों का महत्त्व
========================

श्रोता या पाठक की दृष्टि से यह अरोचक ग्रन्थ है । इन्हें साहित्य की कोटि में नहीं रखा जा सकता । इसीलिए इसे वैदिक वाङ्मय का ग्रन्थ कहा जाता है । इतना होने पर भी इसमें बहुत सी सामग्री उपलब्ध है , जिसे हम यहाँ विभिन्न प्रकल्पों में दिखा रहे हैं---

(१.) यज्ञों का विवरण---
========================

ब्राह्मण-ग्रन्थों में यज्ञों का बृहद् और सर्वाङ्गपूर्ण सामग्री उपलब्ध होती है । यहाँ यज्ञों का वैज्ञानिक स्वरूप प्रस्तुत किया गया है । वैदिक यज्ञों को सूत्ररूप में बताया गया है किन्तु आगे चलकर कल्पसूत्रों में भी विस्तार से समझाया गया है । कल्पसूत्रों का आधार ब्राह्मण-ग्रन्थ ही है ।

(२.) व्याकरण और निर्वचनःः-
========================

यद्यपि व्याकरण और निर्वचन का उद्गम स्थल वेद है । किन्तु ब्राह्मण-ग्रन्थों में यह बहुलता से उपलब्ध होता है । व्याकरण के तत्त्वों जैसे---काल, वचन आदि की विवेचना इन ग्रन्थों में उपलब्ध होती है । इन्द्र प्रथम वैयाकरण थे, जिन्होंने अव्याकृत वाणी को व्याकृत कर दिया था । इसका विवेचन तैत्तिरीय-ब्राह्मण में उपलब्ध होता है ।

(३.) आख्यानों का स्रोतः---
========================

आख्यानों से वैदिक-साहित्य, लौकिक-साहित्य और पुराण भरे पडे हैं । इन सबका आधार ब्राह्मण-ग्रन्थ ही है । ऋग्वेद से पुरुरवा-उर्वशी का आख्यान लेकर शतपथ-ब्राह्मण (११.५.१) में इसे रोचक बनाया गया है । ऐतरेय-ब्राह्मण में हरिश्चन्द्र का आख्यान आता है । इसका आधार भी ऋग्वेद ही है । इन आख्यानों को काल्पनिक रूप देकर पुराणों में फैलाया गया है । इनसे मतिभ्रम भी होता है और सामान्य पाठक इन्हें इतिहास मान लेते हैं, जो अनर्थक साबित होता है ।

(४.) मीमांसा-दर्शन का आधारः---
========================

वैदिक-कर्मकाण्ड की विवेचना मुख्यतः पूर्व-मीमांसा दर्शन करता है । इसे बहुत से लोग कर्ममीमांसा, धर्ममीमांसा या मीमांसा-दर्शन भी कहते हैं । इनका आधार ब्राह्मण-ग्रन्थ ही है । ब्राह्मण-ग्रन्थों में प्रतिपादित विधि-वाक्यों को मीमांसा में "शास्त्र" कहा जाता है , जिनसे लक्षित होने वाले कल्याणकारी कर्म "धर्म" की संज्ञा पाते हैं----"चोदनालक्षणो अर्थो धर्मः" (मीमांसा-सूत्र--१.१.२) ।

(५.) वैदिक-भाषा के विकास का सोपानः---
========================

वेदों से भाषा का प्रारम्भ होता है । ब्राह्मण-ग्रन्थों में इसका विस्तार होता है । विचार-विनिमय का आधार गद्य है, ब्राह्मणों में गद्य प्रधान है । वैदिक-युग की कैसी भाषा थी, कैसा व्यवहार होता था, आप ब्राह्मणों से ज्ञात कर सकते हैं । वे लम्बे समासों का प्रयोग नहीं करते थे । वाक्य छोटे-छोटे होते थे । भाषा-शास्त्र की दृष्टि से ब्राह्मण-ग्रन्थ बहुत उपयोगी है ।

(६.) इतिहास और भूगोलः---
========================

ब्राह्मण-ग्रन्थों में इतिहास और भूगोल से सम्बन्धित प्रचुर सामग्री मिलती है । जैसे कुरु-पाञ्चाल देश तथा सरस्वती नदी का तट ब्राह्मण-ग्रन्थों में निर्दिष्ट हैं । जहाँ सरस्वती नदी लु्पत हुई है, उसे "विनशन" कहते हैं । यमुना के प्रवाह का क्षेत्र "कारपचव" कहा जाता था । (ताण्ड्य-ब्राह्मण--२५.१०.२३) सरस्वती और दृषद्वती नदियों के मध्य भाग तथा उनके संगम की चर्चा भी हुई है ।

शतपथ-ब्राह्मण आदि ग्रन्थों में तात्कालिक धर्म एवं संस्कृति की बहुधा चर्चा है । राजनीति, समाज, नैतिकता, नारी की महिमा आदि ऐतिहासिक तथ्य इनके अनुशीलन से ज्ञात होते हैं ।



=============================
www.vaidiksanskrit.com
===============================
हमारे सहयोगी पृष्ठः--
(१.) वैदिक साहित्य हिन्दी में
www.facebook.com/vaidiksanskrit
(२.) वैदिक साहित्य और छन्द
www.facebook.com/vedisanskrit
(३.) लौकिक साहित्य हिन्दी में
www.facebook.com/laukiksanskrit
(४.) संस्कृत निबन्ध
www.facebook.com/girvanvani
(५.) संस्कृत सीखिए--
www.facebook.com/shishusanskritam
(६.) चाणक्य नीति
www.facebook.com/chaanakyaneeti
(७.) संस्कृत-हिन्दी में कथा
www.facebook.com/kathamanzari
(८.) संस्कृत-काव्य
www.facebook.com/kavyanzali
(९.) आयुर्वेद और उपचार
www.facebook.com/gyankisima
(१०.) भारत की विशेषताएँ--
www.facebook.com/jaibharatmahan
(११.) आर्य विचारधारा
www.facebook.com/satyasanatanvaidi
(१२.) हिन्दी में सामान्य-ज्ञान
www.facebook.com/jnanodaya
(१३.) संदेश, कविताएँ, चुटकुले आदि
www.facebook.com/somwad
(१४.) उर्दू-हिन्दी की गजलें, शेर-ओ-शायरी
www.facebook.com/dilorshayari
(१५.) सूक्ति-सुधा
www.facebook.com/suktisudha
(१६.) आर्यावर्त्त-गौरवम्
www.facebook.com/aryavartgaurav
(१७.) संस्कृत नौकरी
www.facebook.com/sanskritnaukari
हमारे समूहः---
(१.) वैदिक संस्कृत
https://www.facebook.com/groups/www.vaidiksanskrit
(२.) लौकिक संस्कृत
https://www.facebook.com/groups/laukiksanskrit
(३.) ज्ञानोदय
https://www.facebook.com/groups/jnanodaya
(४.) नीतिदर्पण
https://www.facebook.com/groups/neetidarpan
(५.) भाषाणां जननी संस्कृत भाषा
https://www.facebook.com/groups/bhashanam
(६.) शिशु संस्कृतम्
https://www.facebook.com/groups/bharatiyasanskrit
(७.) संस्कृत प्रश्नमञ्च
https://www.facebook.com/groups/sanskritprashna
(८.) भारतीय महापुरुष
https://www.facebook.com/groups/bharatiyamaha
(९.) आयुर्वेद और हमारा जीवन
https://www.facebook.com/groups/vedauraaryurved
(१०.) जीवन का आधार
https://www.facebook.com/groups/tatsukhe
(११.) आर्यावर्त्त निर्माण
https://www.facebook.com/groups/aaryavartnirman
(१२.) कृण्वन्तो विश्वमार्यम्
https://www.facebook.com/groups/krinvanto
(१३) कथा-मञ्जरी
https://www.facebook.com/groups/kathamanzari
(१४.) आर्य फेसबुक
https://www.facebook.com/groups/aryavaidik
(१५.) गीर्वाणवाणी
https://www.facebook.com/groups/girvanvani
(१६) वीरभोग्या वसुन्धरा
https://www.facebook.com/groups/virbhogya
(१७.) चाणक्य नीति को पसन्द करने वाले मित्र
https://www.facebook.com/groups/chaanakyaneeti/
(१८.) वैदिक संस्कृत मित्र
https://www.facebook.com/groups/vedicsanskrit/
(१९.) कुसुमाञ्जलिः
https://www.facebook.com/groups/kusumanjali/
(२०.) संस्कृत नौकरी 
https://www.facebook.com/groups/sanskritnaukari
(२१.) सूक्ति-सूधा
https://www.facebook.com/groups/suktisudha/
 (२२.) भारतीयं विज्ञानम्
https://www.facebook.com/groups/indiascience/

(२३.) वैदिक संसार
 https://www.facebook.com/groups/vaidiksansar/
 हमारे ब्लॉग
(१.) वैदिक संस्कृत
www.vaidiksanskrit.blogspot.in/
(२.) वैदिक संस्कृत
www.vediksanskrit.blogspot.in/
(३.) लौकिक संस्कृत
www.laukiksanskrit.blogspot.in/
(४.) चाणक्य नीति
www.chaanakyaniti.blogspot.in/
(५.) आर्य सिद्धान्त
www.aryasiddhant.blogspot.in/
(६.) संस्कृत नौकरी
www.sanskritnaukari.blogspot.in/
(७.) आयुर्वेद
www.aayurvedjivan.blogspot.in/
(८.) कथा-मञ्जरी
www.kathamanzari.blogspot.in/
(९.) सूक्ति-सुधा
www.suktisudha.blogspot.in/
(१०.) जय भारत महान्
www.jaibharatmahan.blogspot.in/
(११.) कुसुमाञ्जलिः
www.kusumanzali.blogspot.in/

No comments:

Post a Comment