Sunday 24 July 2016

देवों में सबसे श्रेष्ठ देव कौन ?

!!!---: देवों में सबसे श्रेष्ठ देव कौन ?---!!!
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दिव्यगुणशक्तियों का नाम "देव" है । ये शक्तियाँ हमारे मस्तिष्क में रहती हैं । इनकी प्रेरणा से ही मनुष्य धर्मरूप यज्ञ के अनुष्ठान में प्रवृत्त होता है । ये देव कितने हैं, यह जान सकना तो आसान नहीं है । एक बार विदेहराज जनक ने एक महायज्ञ किया । यज्ञ की समाप्ति पर विदेहराज जनक ने घोषणा की---हे ऋषिगण ! ये एक हजार बहुमूल्य गाएँ हैं । मैं इन्हें सबसे बडे वेदवेत्ता को दक्षिणा में देना चाहता हूँ । जो ब्रह्मिष्ठ (सबसे बडा तत्त्ववेत्ता) हो, वह इन गाओं को हाँक ले जाए ।

महाराज की इस घोषणा को सुनकर समस्त ऋषिमण्डल असमंजस में पड गया । भला कौन इतने बडे-बडे विज्ञानियों में अपने को ब्रह्मिष्ठ घोषित करने का साहस कर सकता था । महाविज्ञानी याज्ञवल्क्य ने मौन को तोडा । उन्होंने अपने एक शिष्य को गौ हाँकने का आदेश दे दिया । तब सब ऋषियों के मुख से आश्चर्यपूर्ण शब्द निकले---हे याज्ञवल्क्य ! क्या तुम अपने को सबसे बडा ब्रह्मिष्ठ मानते हो ?

याज्ञवल्क्य बोले---ऋषिगण ! ब्रह्मिष्ठ को मेरा नमस्कार हो । मैं तो बस गोकाम (Willing of Cows) हूँ ।

इतना कहने पर भी ऋषिगण को यह अच्छा नहीं लगा कि एकाकी याज्ञवल्क्य समस्त गायों को अपने आश्रम में ले जाए । पर किसकी हिम्मत जो महाविद्वान् याज्ञवल्क्य से ब्रह्मोद्यसमर में उतर कर सिद्ध करे कि मैं याज्ञवल्क्य से बडा ब्रह्मिष्ठ
हूँ । कुछ ऋषियों ने ख्यातनाम विदग्ध शाकल्य पर दृष्टि डाली । प्रगल्भ विद्वान् शाकल्य खडा हुआ और बोला---हे याज्ञवल्क्य ! तुम इस प्रकार गायों को नहीं ले जा सकते । मैं तुमसे प्रश्न करूँगा । याज्ञवल्क्य ने शान्त भाव से कहा---हे विदग्ध शाकल्य ! अधजली लकडी जैसे अग्नि से बाहर निकाल लेने पर बुझ जाती है, उसी प्रकार .े ऋषि तुझे कर रहे हैं । पर विदग्ध शाकल्य नहीं रुका । उसने याज्ञवल्क्य को ज्ञानयुद्ध में पछाड देने की महती लालसा से जटिल प्रश्न पूछने प्रारम्भ किए । हे याज्ञवल्क्य ! बताओ देव कितने हैं

तब याज्ञवल्क्य ने पहले 33 सौ देव बताये, दूसरी बार 33, तीसरी बार तीन, चौथी बार दो, पाँचवीं बार डेढ और अन्त में केवल एक ही प्राण को देव बताया । तब विजिगीषु (जीतने का इच्छुक) शाकल्य ने पूछा---हे याज्ञवल्क्य ! बताओ 33 सौ देव कौन-कौन हैं । तब याज्ञवल्क्य ने शान्त भाव से उत्तर दिया---हे विदग्ध शाकल्य ! दिव्यज्ञान रूप देवशक्तियाँ अति सूक्ष्म तथा सर्वतोभावेन ज्ञेय नहीं है । वास्तव में ज्ञेय-अनुभवनीय प्रमुख देवशक्तियाँ 33 ही हैं । इन सब देवशक्तियों का एक ही महान् देव आदि स्रोत है, जिसको "प्राण" कहा जाता है ।

जैसे भौतिक प्राण सकल जीवों के शरीर का धारक और चालक है, वैसे ही समस्त ज्ञान शक्ति रूप देवों का कारणभूत परमेश्वर है, उसे ही वेदों में प्राण कहा गया है . समस्त ऋषि-मण्डल याज्ञवल्क्य की तत्त्ववेतृता पर चकित था । विदग्ध शाकल्य का विजिगीषाभाव टूट गया । याज्ञवल्क्य धीर स्वर से बोले---शाकल्य ! विजिगीषाभाव से तूने अतिगूढ प्रश्नों को पूछा है, जाओ आने वाली तिथि में तुझे तेरे प्राण छो़ देंगे । तेरी अस्थियों तक को भी कोई तेरे घर तक भी नहीं पहुँचा सकेगा और समस्त ऋषिमण्डल ने देखा कि विदग्ध शाकल्य पराजय की असह्य वेदना को सह न सका और अगले दिन उसके प्राण पखेडु उड गए । शाकल्य के शिष्य उनकी अस्थियों को लेकर जा रहे थे तो चोरों ने धन समझ कर उन्हें भी चुरा लिया । यह भी ऋषि ने सुना । उनके मुख से सहसा निकल गया कभी भी विजिगीषाभाव से प्रश्न नहीं पूछने चाहिए ।

यह लेख अभी जारी है । आप हमारे साथ रहे, इस लेख के बहुत से बहुमूल्य प्रश्न बाकी हैं । बहुत प्रेरणास्पद लेख हैं, इसमें वैदिक संस्कृति का ज्ञान भरा हुआ है ।


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