Tuesday 17 May 2016

षड्विंश-ब्राह्मण का परिचय

!!!---: षड्विंश-ब्राह्मण का परिचय :---!!!
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यह कौथुम शाखीय सामवेद का महत्त्वपूर्ण ब्राह्मण ग्रन्थ है । यह गत पोस्ट में उद्धृत पञ्चविंश के स्थान पर षड्विंश ब्राह्मण है, अर्थात् इसमें 25 के स्थान पर 26 अध्याय हैं । यह पञ्चविंश (ताण्ड्य) ब्राह्मण का ही परिशिष्ट समझा जाता है ।

सायण ने अपने भाष्य में इसे "ताण्ड्यैकशेष ब्राह्मण" अर्थात् ताण्ड्य का एक भाग या परिशिष्ट कहा है । ताण्ड्य ब्राह्मण में सोमयाग के जिन विषयों का वर्णन नहीं हुआ है, उनका इसमें विवेचन हैं । अतः इसे ताण्ड्य का परिशिष्ट समझा जाता है ।

षड्विंश-ब्राह्मण का विभाजन दो प्रकार से उपलब्ध होता हैः---(1.) प्रपाठक तथा खण्ड (2.) अध्याय तथा खण्ड । जीवानन्द विद्यासाग कोलकाता, 1861 के संस्करण में पूरे ग्रन्थ में पाँच ही प्रपाठक हैं तथा केन्द्रीय संस्कृत विद्यापीठ , तिरुपति 1967 वाले संस्करण में समग्र ग्नन्थ 6 अध्यायों में विभक्त है ।

षड्विंश ब्राह्मण में 6 अध्याय है । इनके अवान्तर भेद खण्ड है । इसके प्रथम पाँच अध्यायों में यज्ञ का ही विषय वर्णित है । अन्तिम अध्याय (6) को "अद्भुत ब्राह्मण" कहते हैं । इसमें भूकम्प, अतिवृष्टि, अकाल, अनिष्ट , कुस्वप्न और अपशकुनों आदि के साथ ही विभिन्न उत्पातों की शान्ति के लिए विभिन्न याग आदि का वर्णन है । यह प्रपाठक उस युग की विभिन्न भावनाओं को समझने के लिए नितान्त उपयोगी है । इन्हीं विषयों को ग्रहण कर गत युग के धर्मग्रन्थों में प्रायश्चित्तों का विपुल विधान पाया है । दोनों की तारतम्य परीक्षा के लिए इस प्रपाठक का मूल्य अत्यधिक है ।

यह ब्राह्मण तत्कालीन मान्यताओं , प्रथाओं आदि के ज्ञान के लिए बहुत उपयोगी है । इन विषयों को लेकर परकालीन धर्मशास्त्रों आदि में प्रायश्चित्तों और विभिन्न यज्ञों का वर्णन है ।

इसके प्रथम अध्याय में "सुब्रह्मण्या" ऋचा का विशेष वर्णन है । भूः, भुवः और स्वः इन तीन महाव्याहृतियों से क्रमशः ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद की उत्पत्ति का वर्णन है । अभिचार यज्ञों (विशेषकर श्येनयाग) के समय ऋत्विज् लाल पगडी और लाल धोती पहनते थे ।

"लोहितोष्णीषा लोहितवाससो निवीता प्रचरन्ति ।" (षड्. 4.22)

ब्राह्मणों के लिए सन्ध्योपासना के समय अहोरात्र की सन्धि अर्थात् प्रातः और सायं सन्धिवेला बताया गया है ।

"तस्माद् ब्राह्मणोहोरात्रस्य संयोगे सन्ध्यामुपासते ।" (षड्. 5.5.4)



षड्विंश ब्राह्मण में यज्ञिय विधानों के प्रसंग में 24 आख्यायिकाएँ आईं हैं । इनमें इन्द्र और अहिल्या वाला आख्यान बहुत प्रसिद्ध है ।
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