Wednesday 20 April 2016

ताण्ड्य-महाब्राह्मण परिचय

!!!---: ताण्ड्य-महाब्राह्मण परिचय :---!!!
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नामकरण का आधारः---
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इस ब्राह्मण के प्रवक्ता आचार्य ताण्डि हैं, अतः स्वभावतः इस ब्राह्मण का नाम "ताण्ड्य-ब्राह्मण" रखा गया । ताण्डि आचार्य बादरायण ऋषि के शिष्य माने जाते हैं । यह सभी ब्राह्मणों में सर्वाधिक विशाल ब्राह्मण है, अतः इसे "महाब्राह्मण" कहा गया है । इसमें 25 अध्याय हैं, अतः इसे "पञ्चविंश-ब्राह्मण" भी कहा जाता है । इसके विषय प्रौढ होने के कारण इसे "प्रौढ-ब्राह्मण" भी कहा जाता है ।

प्रतिपाद्य विषयः---
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इस ब्राह्मण में 25 अध्याय है, जो पाँच-पाँच के वर्ग में बँटे हुए हैं । जिसे पञ्चिका कहा गया है । इस ब्राह्मण का सम्बन्ध सामवेद की कौथुम शाखा से हैं । सामवेद के ब्राह्मणों में यह प्रधान ब्राह्मण है ।

इसका मुख्य प्रतिपाद्य विषय सोमयाग है । इसमें ज्योतिष्टोम से प्रारम्भ करके एक सहस्र वर्ष तक चलने वाले सोमयागों का वर्णन है । इसमें इसी के अन्तर्गत स्तोत्र, स्तोम, उनकी विष्टुतियाँ आदि का विस्तृत वर्णन है । इसमें उद्गाता ऋत्विक् के कार्यों का विस्तृत वर्णन है । इसलिए यह विशेष समादरणीय है ।

अध्याय के अनुसार प्रतिपाद्य विषयः---
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अ. एक---उद्गाता के लिए पठनीय मन्त्रों का निर्देश,
अ. दो. तीन---त्रिवृत्-पञ्चदशादि स्तोमों की विष्टुतियाँ ।
अ. चार-पाँच---- वर्षभर चलने वाले "गवामयन" याग का वर्णन ।
अ. छः--से नौ---ज्योतिष्टोम, उक्थ्य, अतिरात्र का वर्णन ।
अ. 10 से 15---द्वादशाह यागों का वर्णन ।
अ. 16 से 19---एकाह यागों का वर्णन ।
अ. 20 से 22---अहीन (2 से 12 दिन वाले) यागों का वर्णन ।
अ. 23 से 25---सत्र यागों का वर्णन ।

इसमें कुल 178 सोमयागों का वर्णन है । अहीन याग ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य तीनों वर्णों के लिए विहित है । इसमें दक्षिणा दी जाती है । यजमान अनेक हो सकते हैं । सत्र याग 13 दिन से लेकर वर्षों तक चलते हैं । इसमें ब्राह्मण यजमान होंगे । दक्षिणा नहीं दी जाएगी । 17 से 24 यजमान हो सकते हैं । यह सोमयाग का एक अंग है ।

ताण्ड्य-ब्राह्मण का वैशिष्ट्यः---
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(1.) रचना वैशिष्ट्यः----ताण्ड्य-ब्राह्मण अत्यन्त सुव्यवस्थित और सुसम्पादित है । इसकी भाषा-शैली , रचना-सौष्ठव और वाक्य-विन्यास सुनियोजित है । इसकी पंक्ति और शब्द भी नपे-तुले हैं । इसमें अनावश्यक विस्तार और संक्षिप्तता भी नहीं है । इसलिए यह धर्म और आचार-संहिता के लिए सुविख्यात है । इसमें आख्यायिकाओं का भी वर्णन है । इसमें कुल 180 आख्यायिकाएँ हैं ।

(2.) सोमयागः---इसमें सोमयागों (एकाह से सत्र यागों तक) का सांगोपांग वर्णन है ।
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(3.) सामगान की प्रक्रियाः---
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ऊह और ऊह्यगानों के विशद विवेचन के लिए ताण्ड्य ब्राह्मण अत्यन्त प्रामाणिक ग्रन्थ है । सभी सामों, स्तोत्रों और उनकी विष्टुतियों के लिए इसमें अत्यन्त उपादेय सामग्री प्राप्य है ।

(4.) व्रात्य यज्ञ---
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इसमें "व्रात्य-यज्ञ" विशेष महत्त्वपूर्ण है । यह संस्कारहीन व्यक्तियों की शुद्धि के लिए होता है । यह एक दिन का याग होता है । इसमें सांस्कृतिक दृष्टि से बहुमूल्य सामग्री मिलती है । ऋत्विजों को दक्षिणा में उष्णीष (पगडी), प्रतोद (बैल हाँकने का डंडा , धनुर्दण्ड, इक्के जैसा रथ, काले किनारे की धोती, रजत निष्क (चाँदी का गले का आभूषण) मिलता था । अन्यों को लाल किनारे की धोती, दो जूते और मृगचर्म आदि मिलते थे । (ता.ब्रा. 17.1.14-15)

(5.) सांस्कृतिक और ऐतिहासिक सामग्री---
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भौगोलिक ज्ञान के लिए इसमें विपुल सामग्री है । कुरुक्षेत्र और सरस्वती के क्षेत्र को स्वर्गतुल्य बताया गया है । सरस्वती नदी के लुप्त होने के स्थान "विनशन" और उसके पुनः प्रकट होने के स्थान "प्लक्ष प्रास्रवण" का वर्णन है । इसमें यमुना नदी, नैमिषारण्य, खाण्डव वन, कुरु-पांचाल और मगध जनपद आदि का उल्लेख है ।

(6.) यज्ञ का महत्त्वः---
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इसमें यज्ञ का बहुत महत्त्व वर्णित है । यज्ञ न करने वालों को निकृष्ट और वध्य बताया गया है ।

ताण्ड्य-ब्राह्मण के संस्करणः---
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आनन्दचन्द्र वेदान्तवागीश द्वारा सम्पादित कोलकाता 1870-74
पं. चित्रस्वामिशास्त्री तथा पं. पट्टाभिरामशास्त्री के द्वारा दो भागों में सम्पादित तथा पुनर्मुद्रण --1989
डॉ. लोकेशचन्द्र द्वारा सरस्वती-विहारस्थित ताण्ड्य महाब्राह्मण के हस्तलेख का छाया-मुद्रण।

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