Friday 1 April 2016

गोत्र और प्रवर

!!!---: गोत्र और प्रवर :---!!!
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अपने को जानिए, अपने गोत्र को जानिए, अपने पूर्वजों को जानिए, अपने ऋषि-वंशजों को जानिए । इसके लिए निम्नलिखित 6 विषयों की जानकारी आवश्यक है । यह हमारी महान् वैदिक परम्परा रही है कि हम सब अपने-अपने गोत्रों को याद रखते हैं । इसके लिए हमारे मनीषियों, ऋषियों ने कितनी अच्छी परम्परा शुरु की थी कि विभिन्न संस्कारों का प्रारम्भ संकल्प-पाठ से कराते थे, जिसके अन्तर्गत अपने पिता, प्रपिता, पितामह, प्रपितामह के साथ-साथ गोत्र, प्रवर, आदि का परिचय भी दिया जाता था । इसमें जन्मभूमि, भारतवर्ष का भी उल्लेख होता था। इसमें सृष्टि के एक-एक पल का गणन होता था और संवत् को भी याद रखा जाता था । यह परम्परा आज भी प्रचलित है, कुछ न्यूनताओं के साथ ।



गोत्र और प्रवर की आवश्यकता विवाह के समय भी होती है । इसलिए इसे जानना आवश्यक है । इसके अन्तर्गत हम इन पाँच विषयों पर चर्चा करेंगेः---

1) गोत्र
2) प्रवर
3) वेद
4) शाखा
5) सूत्र
6) देवता,

(1.) गोत्रः----
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गोत्र का अर्थ है, कि वह कौन से ऋषिकुल का है। या उसका जन्म किस ऋषिकुल में हुआ है। किसी व्यक्ति की वंश परंपरा जहां से प्रारम्भ होती है, उस वंश का गोत्र भी वहीं से प्रचलित होता है। हम सभी जानते हैं कि हम किसी न किसी ऋषि की ही संतान हैं । इस प्रकार से जो जिस गोत्र ऋषि से प्रारम्भ हुआ वह उस ऋषि का वंशज कहा गया।

इन गोत्रों के मूल ऋषि – अंगिरा, भृगु, अत्रि, कश्यप, वशिष्ठ, अगस्त्य, तथा कुशिक थे, और इनके वंश अंगिरस, भार्गव,आत्रेय, काश्यप, वशिष्ठ अगस्त्य, तथा कौशिक हुए। [ इन गोत्रों के अनुसार इकाई को "गण" नाम दिया गया, यह माना गया कि एक गण का व्यक्ति अपने गण में विवाह न कर अन्य गण में करेगा। इस तरह इन सप्त ऋषियों के पश्चात् उनकी संतानों के विद्वान ऋषियों के नामों से अन्य गोत्रों का नामकरण हुआ।

गोत्र शब्द का एक अर्थ गो जो पृथ्वी का पर्याय भी है । 'त्र' का अर्थ रक्षा करने वाला भी है। यहाँ गोत्र का अर्थ पृथ्वी की रक्षा करने वाले ऋषि से ही है। गो शब्द इंद्रियों का वाचक भी है, ऋषि मुनि अपनी इंद्रियों को वश में कर अन्य प्रजा जनो का मार्ग दर्शन करते थे, इसलिए वे गोत्र कारक कहलाए। ऋषियों के गुरुकुल में जो शिष्य शिक्षा प्राप्त कर जहा कहीं भी जाते थे, वे अपने गुरु या आश्रम प्रमुख ऋषि का नाम बतलाते थे, जो बाद में उनके वंशधरो में स्वयं को उनके वही गोत्र कहने की परंपरा पड़ गई।


(2) प्रवरः----
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प्रवर का शाब्दिक अर्थ है--श्रेष्ठ । गोत्र और प्रवर का घनिष्ठ सम्बन्ध है । एक ही गोत्र में अनेक ऋषि हुए । वे ऋषि भी अपनी विद्वत्ता और श्रेष्ठता के कारण प्रसिद्ध हो गए । जिस गोत्र में जो व्यक्ति प्रसिद्ध हो जाता है, उस गोत्र की पहचान उसी व्यक्ति के नाम से प्रचलित हो जाती है । एक सामान्य उदाहरण देखिए---

श्रीराम सूर्यवंश में हुए । इस वंश के प्रथम व्यक्ति सूर्य थे । आगे चलकर इसी वंश में रघु राजा प्रसिद्ध हो गए । तो आगे चलकर इनके नाम से ही रघुवंश या राघव वंश प्रचलित हो गया । इसी प्रकार इक्ष्वाकु भी प्रसिद्ध राजा हुए, तो उनके नाम से भी इस वंश का नाम इक्ष्वाकु वंश पड गया ।

इसी प्रकार ब्राह्मणों के ऋषि वंश में उदाहरण के साथ मिलान करें । जैसेः---वशिष्ठ ऋषि का वंश । वशिष्ठ के नाम से वशिष्ठ गोत्र चल पडा । अब इसी वंश में वाशिष्ठ, आत्रेय और जातुकर्ण्य ऋषि भी हुए , जो अति प्रसिद्धि को प्राप्त कर गए । अब इस वंश के तीन व्यक्ति अर्थात् तीन मार्ग हुए । इन तीनों के नाम से भी वंश का नाम पड गया । ये यद्यपि पृथक् हो गए, किन्तु इन तीनों का मूल पुरुष वशिष्ठ तो एक ही व्यक्ति है, अतः ये तीनों एक ही वंश के हैं, इसलिए ये तीनों आपस विवाह सम्बन्ध नहीं रख सकते । ये तीनों इस वंश श्रेष्ठ कहलाए, इसलिए ये प्रवर हैं ।

इस प्रकार एक गोत्र में तीन या पाँच प्रवर हो सकते हैं । भरद्वाज गोत्र में पाँच प्रवर हैं, अर्थात् इस गोत्र में पाँच ऋषि बहुत प्रसिद्धि को प्राप्त हो गए, इसलिए इनके नाम से भी गोत्र चल पडा, ये गोत्र ही प्रवर हैं । मूल गोत्र भरद्वाज है और इसके प्रवर ऋषि हुए---आंगिरस्, बार्हस्पत्य, भारद्वाज, शौङ्ग, शैशिर ।

ये प्रवर तीसरी पीढी की सन्तान हो सकते हैं, या पाँचवी पीढी की । अपत्यं पौत्रप्रभृति गोत्रम्---अष्टाध्यायी--4.1.162 सूत्रार्थ यह है कि पौत्र से लेकर जो सन्तान है, उसकी भी गोत्र संज्ञा होती है । अर्थात् पौत्र की तथा उससे आगे की सन्तानों की गोत्र संज्ञा होती है । इस सूत्र से गोत्र अर्थात् प्रवर की व्यवस्था है ।

इस व्यवस्था से या तो आप कह सकते हैं कि गोत्र और प्रवर एक ही है या फिर यह कह सकते हैं कि थोडा-सा अन्तर है । दोनों एक ही मूल पुरुष से जुडे हुए हैं ।

प्रवर में यह व्यवस्था है कि प्रथम प्रवर गोत्र के ऋषि का होता है, दूसरा प्रवर ऋषि के पुत्र का होता है, तीसरा प्रवर गोत्र के ऋषि पौत्र का होता है । (यह व्यवस्था आधुनिक है । प्राचीन व्यवस्था पाणिनि के सूत्र से ज्ञात होता है, जो ऊपर दिया हुआ है ।) इस प्रकार प्रवर से उस गोत्र प्रवर्तक ऋषि की तीसरी पीढी और पाँचवी पीढी तक का पता लगता है । हम आपको एक बार और बता देना चाहते हैं कि एक समान गोत्र और प्रवर में विवाह निषिद्ध है ।

गोत्रों के प्रवर

हम यहाँ पर कुछ गोत्र-प्रवर दे रहे हैंः----
(1.) अगस्त्य---इसमें तीन प्रवर हैं---आगसस्त्य, माहेन्द्र, मायोभुव,
(2.) उपमन्यु---वाशिष्ठ, ऐन्द्रप्रमद, आभरद्वसव्य,
(3.) कण्व---आंगिरस्, घौर, काण्व,
(4.) कश्यप---कश्यप, असित, दैवल,
(5.) कात्यायन---वैश्वामित्र, कात्य, कील,
(6.) कुण्डिन---वाशिष्ठ, मैत्रावरुण, कौण्डिन्य,
(7.) कुशिक---वैश्वामित्र, देवरात, औदल,
(8.) कृष्णात्रेय---आत्रेय, आर्चनानस, श्यावाश्व,
(9.) कौशिक---वैश्वामित्र, आश्मरथ्य, वाघुल,
(9.) गर्ग---आंगिरस, बार्हस्पत्य, भारद्वाज, गार्ग्य, शैन्य,
(10.) गौतम---आंगिरस्, औचथ्य, गौतम,
(11.) घृतकौशिक---वैश्वामित्र, कापातरस, घृत,
(12.) चान्द्रायण---आंगिरस, गौरुवीत, सांकृत्य,
(13.) पराशर---वाशिष्ठ, शाक्त्य, पाराशर्य,
(14.) भरद्वाजः---आंगिरस्, बार्हस्पत्य, भारद्वाज, शौङ्ग, शैशिर ।
(15.) भार्गव---भार्गव, च्यावन, आप्नवान्, और्व, जामदग्न्य,
(16.) मौनस---मौनस, भार्ग्व, वीतहव्य,
(17.) वत्स---भार्गव, च्यावन, आप्नवान, और्व, जामदग्न्य,
आदि

शेष चार विषयों (3) वेद, (4) शाखा, (5) सूत्र, (6) देवता पर हम अग्रिम अंक में विस्तार से चर्चा करेंगे ।

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7 comments:

  1. मान्यवर , बहुत स्पष्ट जानकारी हेतु धन्यवाद l

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  2. जानने हेतु बहुत ही अच्छी लेख के आपका आभार

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  3. Krapya sankrat gotr ka vivaran de

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  4. There is no info about nityundan gotra? & its shakha? plz. Tell me about it.

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  5. घृतकौशिक ye mera gotra h aur meri cast Khanal hai, gritakausik Ke ved upved kuldevta aur kuldev Ke bare me bhi bataye. Apki ati kripa hogi

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  6. Sir mera gotra sankratya है
    Iska iski vansabali batane ka kast kare
    Please

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  7. sir mera gotra sankratya hai iski vansabali batane ka kast kare

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