Saturday 27 May 2017

दीर्घ सन्धि का प्रयोग

!!!---: दीर्घ-सन्धि :---!!!
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मित्रो !!!
मैंने दीर्घ सन्धि पर बहुत पहले एक लेख लिखा था, किन्तु फेसबुक के असहयोग के कारण वह पोस्ट डिलीट हो गई । अब मुझे पुनः परिश्रम करना पडा है ।

मैंने आपकी सेवा में अब तक बहुत से प्रत्यय बताएँ हैं, जिसकी आपने सराहना की, प्रशंसा की, पोस्ट पर १०० से अधिक लाइक भी मिली, बहुत से मित्रों ने अनेक प्रश्न भी किए । मैं आपसे अधिक-से-अधिक लाइक चाहता हूँ, क्योंकि यही मेरी खुराक है । आप लाइक करेंगे तो पोस्ट लिखने की इच्छा होती है । इसलिए आपसे निवेदन है कि पोस्ट लाइक अवश्य करें ।

दीर्घ-सन्धि का सूत्र---अकः सवर्णे दीर्घः (अष्टाध्यायी--६.१.९७)
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इसकी परिभाषा बताने से पहले कुछ पारिभाषिक शब्दों को समझ लेना आवश्यक है ।

अक्--प्रत्याहार---अक् प्रत्याहार को अच्छी तरह से याद कर लें । इसमें ये वर्ण आते हैं--अ,आ,इ,ई,उ,ऊ,ऋ,ऋ,लृ

अच् प्रत्याहार---इस प्रत्याहार में सारे स्वर आते हैं । अतः व्याकरण में स्वर को अच् कहा जाता है ।

सवर्ण---व्याकरण में सवर्ण उसे कहा जाता है, जिनका मुख में एक ही स्थान से उच्चारण किया जाता है । इसका प्रयत्न भी समान हो । जैसे--अ और आ सवर्ण अच् (स्वर) है । इसी प्रकार इ और ई, उ और ऊ ऋ और ऋ । ये सभी आपस में सवर्ण अच् (स्वर) हैं । इसमें व्यञ्जन सम्मिलित नहीं है । यह स्वर-सन्धि है, अतः यहाँ व्यञ्जन की आवश्यकता नहीं ।

पूर्व-पर---सन्धि में दो पद अवश्य होते हैं । प्रथम पद को पूर्व पद भी कहते हैं और द्वितीय पद को पर पद या उत्तर पद भी कहते हैं । परे भी द्वितीय पद ही होता है ।

दीर्घ स्वर---आ, ई, ऊ, ऋ इन्हीं चार स्वरों का आदेश दीर्घ सन्धि में होता है ।

एक बात यहाँ समझने की है कि सन्धि दो वर्णों के मध्य ही होती है, शब्दों में नहीं । इसी प्रकार समास शब्दों के बीच होता है, वर्णों में नहीं । सन्धि दो ही वर्णों में होती है, किन्तु समास कई शब्दों में हो सकता है ।

आगमन-विधि के अनुसार हम आपको यह सन्धि पढा रहे हैं । उदाहरण देख लीजिए, परिभाषा आप स्वयं बना देंगे ।

इन स्वर वर्णों के बीच सन्धि होगी---
(१.)
अ+अ=आ-->परम+अर्थः =परमार्थः
अ+आ=आ-->परम+आत्मा =परमात्मा
आ+अ=आ-->विद्या+अर्थी =विद्यार्थी
आ+आ=आ-->विद्या+आलयः =विद्यालयः

इन चारों उदाहरणों को ध्यान से देखिए । कुछ सामान्य बातें आपको दिखाई देंगी । पूर्व पद का अन्तिम वर्ण देखिए और उत्तर पद का प्रथम वर्ण देखिए । इन दोनों का उच्चारण एक ही स्थान कण्ठ से होता है, अतः ये आपस में सवर्णी है ।
(२.)
इ+इ =ई-->मुनि+इन्द्रः=मुनीन्द्रः
इ+ई=ई-->गिरि+ईशः=गिरीशः
ई+इ=ई-->गौरी+इन्द्रः=गौरीन्द्रः
ई+ई=ई-->नदी+ईशः=नदीशः

इन चारों उदाहरणों को भी ध्यान से देखिए । कुछ सामान्य बातें आपको दिखाई देंगी । पूर्व पद का अन्तिम वर्ण देखिए और उत्तर पद का प्रथम वर्ण देखिए । इन दोनों का उच्चारण एक ही स्थान तालु से होता है, अतः ये आपस में सवर्णी है ।

(३.)
उ+उ=ऊ-->गुरु+उदयः=गुरूदयः
उ+ऊ=ऊ-->भानु+ऊर्मिःभानूर्मिः
ऊ+उ=ऊ-->वधू+उदयःवधूदयः
ऊ+ऊ=ऊ-->वधू+ऊर्मिःवधूर्मिः

इन चारों उदाहरणों को ध्यान से देखिए । कुछ सामान्य बातें आपको दिखाई देंगी । पूर्व पद का अन्तिम वर्ण देखिए और उत्तर पद का प्रथम वर्ण देखिए । इन दोनों का उच्चारण एक ही स्थान ओष्ठ से होता है, अतः ये आपस में सवर्णी है ।

(४.)
ऋ+ऋ=ऋ-->पितृ+ऋणम्=पितृणम्

इस उदाहरण में दोनों ऋ आपस में सवर्णी हैं, क्योंकि इन दोनों का उच्चारण मूर्धा से होता है ।

कीबोर्ड पर दीर्घ ऋ नहीं है ।

इन सभी उदाहरणों को बहुत ही ध्यान से देखिए । परिभाषा आपको समझ में आ जाएगी ।
इन सभी उदाहरणों में कुछ सामान्य बाते हैं, जो ऊपर वर्णित हैं । अब हम आपको परिभाषा बताने वाले हैं । आशा है कि उदाहरणों को देखने से आपके मन में बहुत कुछ बातें आ गई होंगी ।

परिभाषा तीन सोपानों में से होकर गुजरेगीः---
प्रथम सोपान--(१.) अक् प्रत्याहार से उत्तर
द्वितीय सोपान (२.) सवर्ण अच् के परे रहते
तृतीय सोपान और फाइनल (३.) पूर्व-पर के स्थान में दीर्घ एक आदेश होता है ।
यह ध्यान रखें कि दीर्घ एक ही आदेश होगा । इस सन्धि में पूर्व के दोनों वर्ण हट जाएँगे और उनके स्थान में एक नया तीसरा दीर्घ वर्ण आ जायेगा ।
परिभाषा---
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अक् प्रत्याहार से उत्तर , सवर्ण अच् के परे रहते, पूर्व-पर के स्थान में दीर्घ एक आदेश होता है ।

अकः सवर्णेSचि परतः पूर्वपरयोः स्थाने दीर्घः एकादेशो भवति, संहितायां विषये ।

अभ्यास के लिए कुछ उदाहरण---
मम+अपि
न+अस्ति
अत्र+अयम्
कक्षा+अन्तरः
भिक्षा+अस्ति
या+अनु
तत्र+आम्रम्
देव+आलयः
महा+आत्मा
शिव+आलयः
रवि+ईशः
गिरि+इन्द्रः
मही+ईशः
दधि+इयम्
वायु+उदयः
वधू+ऊर्जा
होतृ+ऋषयः

मेरे विचार से दीर्घ सन्धि आपको अच्छी तरह से समझ में आ गई होगी । यदि फिर भी कोई प्रश्न है तो टिप्पणी में जाकर प्रश्न लिखें । हम उत्तर देंगे । ===============================
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