Monday 29 May 2017

गौरक्षा के आन्दोलन की शुरुआत आर्य समाज ने की थी ।

गौरक्षा आन्दोलन की शुरुआत आर्य समाज ने की---श्री राजीव दीक्षित जी
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भारत देश में गोहत्या निषेध के लिए एक जबरदस्त आंदोलन शुरू हुआ था सन १८७० में और इस आंदोलन का इतिहास अंग्रेजो ने दबा कर रखा और हमारे इतिहासकारों ने भी इस बात पर ज्यादा शोध नहीं किया । १८७० से लेकर १८९४ तक माने २४ साल तक इस देश में गौ हत्या निषेध का जबरदस्त आंदोलन था और अंग्रेजों के खुफिया विभाग के खुफिया अधिकारी का यह कहना था कि १८५७ का आंदोलन जितना बड़ा था , उससे कई गुना बड़ा यह गौ हत्या निषेध का आंदोलन था, जो १८७० में शुरू हुआ और १८९४ तक चला ।
आर्य समाज ने गौ बचाओ आन्दोलन की शुरुआत की थी । ===================================
बहुत गर्व से बहुत गौरव से मुझे यह कहना है कि इस आंदोलन की शुरुआत आर्य समाज के लोगों ने की थी । आर्य समाज के कार्यकर्ताओं ने की थी । आप जानते हैं परम पूजनीय महर्षि दयानंद जी की शिक्षाओं से प्रेरित और प्रभावित होकर बहुत सारे युवक आजादी के आंदोलन में कूदे थे । परम पूजनीय महर्षि दयानंद से ही प्रभावित होकर बहुत सारे युवक गौरक्षा आंदोलन और गोहत्या निषेध के आंदोलन में १८७० में कूदे थे । आर्य समाज की स्थापना तो १८७५ में हुई थी, लेकिन आर्य समाज की नींव परम पूजनीय स्वामी दयानंद के कार्यों से पहले ही पड़ चुकी थी , सन १८७० में ये आंदोलन शुरू हुआ ।
आज जिस स्थान पर हरियाणा है, पहले यह पंजाब हुआ करता था । हरियाणा आजादी के बाद बना है । इस इलाके से यह आंदोलन शुरू हुआ और अंग्रेजो के खुफिया रिपोर्ट बताती है कि सबसे पहले यह आंदोलन जींद से शुरू हुआ था । जींद एक बड़ी रियासत हुआ करती थी । उस जमाने में वहां से गौरक्षा आंदोलन १८७० में शुरू हुआ गौरक्षा सभा बनाई गई थी । जींद में उस समय कार्यकर्ताओं ने संकल्प लिया था कि गाय को कटने नहीं देंगे और जो अंग्रेज गाय काटेगा, उस अंग्रेज को हम काटेंगे ।
जीन्द से आन्दोलन की शुरुआत ।
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ऐसे करके आंदोलन फैला । जींद से शुरू हुआ आंदोलन धीरे धीरे संपूर्ण भारत में फैल गया । १८९४ तक आते-आते एक करोड़ से ज्यादा कार्यकर्ता इस गौरक्षा आंदोलन में शामिल हो गए और इन कार्यकर्ताओं ने जगह-जगह कत्लखाने बंद करवाना शुरू कर दिया और यह कत्लखाने बंद करवाने का काम कैसे किया करते थे । अंग्रेजो के कत्लखाने जो चला करते थे उनके सामने जाकर यह लेट जाते थे और जो गाड़ियां पशुओं को भरकर ले जाती थी उनके सामने ये कार्यकर्ता लेट जाते थे और कहते थे कि हमारे ऊपर से ले कर जाओ तब पशुओं का कत्ल होगा । हम पहले मरेंगे बाद में यह पशु कटेंगे इतना जबरदस्त आंदोलन था । परिणाम यह होने लगा जगह-जगह अंग्रेजों को कत्ल करने के लिए जानवर मिलना बंद हो गए । इन एक करोड़ से ज्यादा कार्यकर्ताओं ने गाँव गांव के किसानों को समझाना शुरू किया कि अंग्रेज तो गाय काटते हैं हम तो गाय पालते हैं । हम गाय बेचेंगे नहीं अंग्रेजों को गाय देंगे नहीं । अंग्रेजों को तो अंग्रेज काटेंगे कैसे तो इस तरह से यह आंदोलन बढा और अंग्रेजों की हालत खराब हो गई । जब जगह-जगह कत्लखानों को गाय मिलना बंद हो गई तो गाय का मांस खाना अंग्रेजों के लिए मुश्किल हो गया ।
केवल अंग्रेज गाय का मांस खाते थे ।
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बिना गाय का मांस खाए वह एक दिन भी रह नहीं सकते थे तो अंग्रेजी सेना में विद्रोह की स्थिति आ गई और अंग्रेजी सैनिकों ने कहा कि गाय का मांस नहीं मिलेगा तो हम बगावत करेंगे विद्रोह करेंगे । अब अंग्रेजी सरकार के लिए एक तरफ कुआँ और एक तरफ खाई थी । ये गौ रक्षा करने करने वाले कार्यकर्ता गाय मिलने नहीं दे रहे थे कटने को और अंग्रेजी सैनिक गाय का मांस ना मिले तो बगावत करने को तैयार तो अंग्रेजों की महारानी ने एक हस्तक्षेप किया । विक्टोरिया ने लैंसडाउन नाम के एक अंग्रेज अधिकारी को पत्र लिखा ।लैंसडाउन उस समय गवर्नर जनरल था १८९४ के आसपास वो पत्र इसके पास आया और उस विक्टोरिया ने उस पत्र में लिखा कि यह जो गाय भारत में कटती है यह तो हमारे लिए ही कटती है । बात तो सही है क्योंकि भारतवासी तो गाय का मांस खाना पसंद करते नहीं हैं । आप इस बात पर ध्यान देना विक्टोरिया खुद लिख रही है ।
मुसलमान गाय कभी नहीं खाते थे ।
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इस बात को वह कह रही है कि गाय भारत में कटती है तो वह हमारे लिए कटती है भारतवासी गाय खाना पसंद नहीं करते हैं और वह कहती है कि भारत के मुसलमान भी गाय खाना पसंद नहीं करते हैं क्योंकि इनके पूर्वज सब हिंदू थे और हिंदुओं ने गाय के मांस को खाना कभी स्वीकार किया नहीं इसलिए भारत के मुसलमान भी गाय खाना पसंद नहीं करते थे उस पत्र में एक अनेक्स्चर लगा हुआ है जिसमें एक वाक्य है विक्टोरिया लैंसडाउन को लिख रही है कि मुझे जानकारी मिली है कभी किसी मुस्लिम भाई के घर में गलती से गाय का मांस आ गया और जिस बर्तन में वो रख गया और मुस्लिम भाई को पता चल गया कि यह गाय का मांस था तो वह उस मुस्लिम परिवार उस बर्तन को हमेशा के लिए घर के बाहर फेंक देता है वह मानते हैं कि यह गलती हुई है यह भूल हुई है ।
हिन्दुस्तान में गाय केवल अंग्रेजों के लिए ही कटती थी ।
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तो विक्टोरिया लिख रही है पत्र में कि ना तो भारत में मुसलमान गाय का मांस खा रहे हैं ना हिंदू खा सकते हैं गाय कट रही है तो अंग्रेजों के लिए कट रही है ।अब गौ रक्षा आंदोलन जो चल पड़ा है । पूरे भारत में हमको गाय मिलना बंद हो गई है । हमारे कत्लखाने बंद हो रहे हैं इसका अब एक ही उपाय है लैंसडाउन को वो कह रही है चिट्ठी में ।
अंग्रेजों ने हिन्दुओं और मुसलमानों को लडाने की नींव रखी ।
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इसका एक ही उपाय है क्या उपाय हैं लैंसडाउन को वह कह रही है कि तुम ऐसा करो की भारत के जो कत्लखाने अंग्रेजों के लिए चल रहे हैं और मॉस अंग्रेजों के लिए पैदा हो रहा है इन कत्लखानों में गाय का कत्ल करने के लिए मुसलमानों की भर्ती करो । इस बात पर ध्यान दीजिए । वह कहती है कि मुसलमानों की भर्ती करो । इसका माने गाय काटने का काम मुसलमान नहीं उन कत्लखानों में वो अंग्रेज ही करते रहे होंगे । अंग्रेजों को हटाकर मुसलमानों की भर्ती करो और हिंदुओं को यह बताओ कि भारत में तुम्हारी गाय मुसलमान काट रहे हैं तो यह हिंदू और मुसलमान जो मिलकर गौ रक्षा के आंदोलन में लड़ रहे हैं । यह आपस में लड़ने लगेंगे और हमारा रास्ता खुल जाएगा और हमारी नीति डिवाइड एंड रूल बांटो और राज करो । फूट डालो और राज करो सफल हो जाएगी और हमारी सेना में भी बगावत नहीं होगी और हमारे सेना के लोगों को मॉस भी मिलता रहेगा कत्लखाने भी चलते रहेंगे ।यह पत्र लिखा उसने लैंसडाउन को । लैंसडाउन ने पत्र पढ़ा । उसने एक मीटिंग बुलाई । मीटिंग बुलाकर उसने आदेश दिया कि जितने सरकारी कत्लखाने हैं उनमें मुसलमानों की भर्ती की जाए तो मुसलमानों में से कोई तैयार ही नहीं हुआ । भर्ती के लिए कोई आया ही नहीं तो उन्होंने कहा कि ढूंढो कोई तो मुसलमानों में जाति समूह होगा जिसको हम इस काम में लगा सकें ।

कुरैशी जाति के मुसलमानों पर आत्याचार किया गया ।
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तो कुरैशी जाति समूह के मुसलमानों को प्रताड़ित कर के अत्याचार करके मारपीट कर अंग्रेजों ने गाय के कत्ल के काम में लगा दिया और इनको इतना प्रताड़ित करते थे कि गाय काटो गाय काटो । फिर होता क्या था कि यह गाय काटते थे कुरेशी समाज के लोग अंग्रेजों के दबाव में आकर । फिर अंग्रेज इसको पूरे देश में प्रचारित करते थे हिन्दुओ के बीच में देखो तुम्हारी गाय तो मुसलमान काट रहे हैं, तो १८७० से १८९४ तक जो आंदोलन चला गोरक्षा का जिसमे हिंदू मुसलमान दोनों साथ मिलकर गाय को बचाने के लिए लड़ रहे थे आपको सुनकर ताज्जुब होगा कि जींद की जो गौ रक्षा समिति १८७० में बनी उस में ११ हिंदू थे और ७ मुसलमान थे । १८ लोगों की समिति थी । हर जगह गौ रक्षा की समिति में हिंदू मुसलमान साथ में मिलकर काम कर रहे थे । विक्टोरिया ने लेंसडाउन को आदेश देकर मुसलमानों से जबरदस्ती गाय कटवाकर कुरेशी समाज के लोगों को दबाव डालकर एक घ्रणित काम शुरु किया और सारे देश में यह लहर फैल गई कि हिंदू और मुसलमान जो मिलकर गाय को बचा रहे थे , अब एक दूसरे के जानी दुश्मन बन गए हैं ।
हिन्दू और मुसलमानों को आपस में लडवाया गया ।
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विक्टोरिया के इस पत्र के बाद जो नीति बनी उस में हिंदू और मुसलमान आपस में लड़ने लगे । मुसलमानों के बीच में प्रचार किया गया कि कुरेशी को बहिष्कार करो, क्योंकि यह गाय काट रहे हैं हिंदुओं में प्रचार किया गया कि कुरेशियों को मारो पीटो , क्योंकि तुम्हारी गाय काट रहे हैं और अंग्रेज पूरे सुरक्षित हो गए । १८९४ से यह नीति बनी और १८९७ में इस नीति ने पूरे देश में एक विस्फोट कर दिया और पहली बार मुझे दुःख है यह कहते हुए कि हिंदू मुसलमान का पहला दंगा १८९७ में अंग्रेजों ने कराया । वो इस नीति के तहत करवाया ताकि ये हिंदू मुसलमान अलग अलग हो जाएं और इस देश की गाय कटती रहे और अंग्रेजों का शासन सुरक्षित रहे । लैंसडाउन वह खतरनाक अंग्रेज अधिकारी था , जिसने हिंदू मुसलमानों को लडवाया और हिंदुओं को मुसलमानों के खिलाफ और मुसलमानों को हिन्दुओं के खिलाफ बरगलाया । यह लैंसडाउन ने कुछ टीम बना रखी थी आपको सुन के लगेगा कि कितना घृणित आदमी था वो । उसकी टीम के लोग जाते थे और किसी मस्जिद के सामने रात को २.३० से ३.०० बजे सूअर काट कर डाल कर चले जाते थे ।
दंगा भडकाया गया ।
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लैंसडाउन की टीम के लोग सवेरे हल्ला मचाते थे कि देखो हिंदुओं ने सूअर काट के मस्जिद में डाल दिया । फिर लैंसडाउन के लोग जाते थे और किसी मंदिर के सामने गाय को काट कर छोड़ जाते थे और लैंसडाउन के कर्मचारी प्रचार करते थे । देखो मुसलमानों ने गाय को काट दिया ।
बंगाल का विभाजन
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इस तरीके से दंगा भड़काया और १८९७ में जब दंगा भड़का इस देश में दंगा भड़कते-भड़कते १९०५ तक कितना खतरनाक हो गया कि अंग्रेजों ने हिंदू और मुसलमानों के आधार पर देश का विभाजन करने का तय कर लिया और बंगाल राज्य को पूर्वी बंगाल और पश्चिम बंगाल में बांट दिया ।
लैंसडाउन नाम का शहर
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जिस अंग्रेज अधिकारी लैंसडाउन ने ये विष का बीज बोया । हिंदू और मुसलमानों में उस लैंसडाउन के नाम से इस उत्तराखंड में एक पूरा शहर बसा हुआ है । एक नगर बसा हुआ है उसका नाम लैंसडाउन है । आत्मा को दुःख होता है, कष्ट होता है, क्रोध आता है कि लैंसडाउन ने हिंदू मुसलमानों को लड़ाया । गाय का मांस अंग्रेजों को खाने को मिलता रहे इसके लिए गाय का कत्ल करने के लिए कत्लखाने चालू करवा कर रखे उस लैंसडाउन का नाम हम क्यों लें और उसके नाम पर शहर का नाम क्यों बने । मैं अपील करना चाहता हूं कि लैंसडाउन की नगरपालिका से लैंसडाउन की नगर परिषद से । मैं अपील करना चाहता हूं । उत्तराखंड की सरकार के मुख्यमंत्री से उत्तराखंड की सरकार से अपील करना चाहता हूं कि जितनी जल्दी हो यह लैंसडाउन नाम के कलंक को इस पाप को उत्तराखंड से जितनी जल्दी मिटा दिया जाए उतना अच्छा है ।
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