Tuesday 21 March 2017

संस्कार सूक्ष्म-शरीर में रहते हैं ।।

!!!---: वैदिक संस्कार :---!!!
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भागः---८

संस्कार सूक्ष्म-शरीर में रहते हैं ।।
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भारती दर्शन ने इस सूक्ष्म शरीर के भीतर एक सूक्ष्म-शरीर को माना है । आत्मा अभौतिक है, इसका भौतिक शरीर के साथ सीधा सम्बन्ध नहीं हो सकता ।

माध्यम के तौर पर अभौतिक आत्मा तथा भौतिक-शरीर के बीच में "सूक्ष्म-शरीर" आता है । यह इतना सूक्ष्म है कि अभौतिक के समान है और क्योंकि यह प्रकृति के सूक्ष्म तत्त्वों से बना है, इसलिए यह भौतिक के समान भी है ।

अभौतिक होने के कारण इसका आत्मा के साथ सीधा सम्बन्ध है,, भौतिक होने के कारण इसका स्थूल-शरीर से, मस्तिष्क से, मस्तिष्क पर पडे "आलेखनों" (Engrams) से भी सीधा सम्बन्ध है । यही कारण है कि मस्तिष्क पर जो भौतिक रूप से संस्कार पडते हैं, रेखाएँ खींचती हैं, जिनका जोड होकर मनुष्य का स्वभाव बन जाता है, वह सब मस्तिष्क से चलकर सूक्ष्म शरीर में आ पहुँचता है । अब हमारे संस्कारों का क्षेत्र मस्तिष्क न रहकर सूक्ष्म-शरीर हो जाता है, जो भौतिक देह के मर जाने पर भी नहीं मरता, जो संस्कारों के निचोड को, हमारे स्वभाव को जन्म-जन्मान्तर में अपने साथ लिए फिरता है ।

सूक्ष्म-शरीर का स्थूल-शरीर के साथ सम्बन्ध नाभि-प्रदेश से होता है । तभी जब कोई दुर्घटना अचानक होने लगती है, तब पहले एकदम नाभि-स्थल पर घबराहट मालूम होती है ।

योग में जिन सात चन्द्रों का वर्णन आता है, वे चक्र सूक्ष्म-शरीर तथा स्थूल-शरीर के सम्बन्ध स्थल हैं ।

सूक्ष्म-शरीर, आत्मा का, शरीर को इस्तेमाल करने का साधन है ।

जैसे मोटर को चलाने के लिए पेट्रौल की टंकी को चाभी दी जाती है, वैसे शरीर की गाडी को चलाने के लिए आत्मा सूक्ष्म-शरीर को "कम्पन" (Vibration) देता है ।

मृत्यु स्थूल-शरीर की होती है, सूक्ष्म-शरीर की नहीं ।

सूक्ष्म-शरीर सदा आत्मा के साथ बना रहता है, तब तक आत्मा के साथ बना रहता है, जब तक मुक्ति नहीं हो जाती ।

हमारे विचार, हमारे सुझाव, हमारे अनुभव, हमारे संस्कार----इन सबका संगृहीत रूप, सिमटा हुआ रूप, बीज रूप में इस सूक्ष्म-शरीर में रहता है ।

कर्मों के फल की जो समस्या थी-----यह समस्या कि एक-एक कर्म का फल कैसे मिलता है, वे कर्म जब तक उनका फल नहीं मिलता, किस बही खाते में लिखे पडे रहते हैं, इस समस्या का उत्तर सूक्ष्म-शरीर है ।

बीज में वृक्ष की तरह इसी सूक्ष्म-शरीर में सब कुछ समाया रहता है और कर्मों के ढेर को मानो एक घोल में हल करके संस्कारों की शक्ल में लेकर आत्मा का यह सेवक---सूक्ष्म-शरीर---जन्म-जन्मान्तरों तक आत्मा के लिए ढोए फिरता है ।
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