Friday 30 September 2016

गृहस्थ की तीन बातें

!!!---: गृहस्थ की तीन बातें :---!!! ===============================

।। ओ३म् ।। "सुगा देवा सदनाSअकर्म यSआजग्मेदं सवनं जुषाणाः ।
भरमाणा वहमाना हवींष्यस्मे धत्त वसवो वसूनि स्वाहा ।।" (यजुर्वेदः--८.१८)

ऋषिः---अत्रिः ।। देवता---गृहपतयः ।। छन्दः---आर्षीत्रिष्टुप् ।। स्वरः--धैवतः ।।

शब्दार्थः----(१.) हे देवाः ---उत्तम व्यवहार वालों तथा काम-क्रोध को जीतने की कामना वाले गृहस्थों । (ये)--जो तुम्, (इदं सवनम्)---इस सन्तान निर्माण के साधनभूत गृहस्थ-यज्ञ को (जुषाणाः) प्रीतिपूर्वक सेवन करते हुए, (आजग्म) आए हो, उन (वः) तुम्हारे (सदना) (सदनानि) घरों को, (सुगाः) सुन्दर गति वाला, उत्तम क्रियाओं वाला (अकर्म) करते हैं, अर्थात् जब गृहस्थ लोग सन्तन-निर्माण रूप यज्ञ को ही गृहस्थ में प्रवेश का उद्देश्य समझते है, तब घरों में उत्तम कार्य ही चलते हैं ।

(२.) ऐसे गृहस्थों से प्रभु कहते हैं कि (क) (भरमाणाः) घर के सब सदस्यों का भरण करते हुए, उनके पालन-पोषण में कमी न आने देते हुए (ख) (हवींषि वहमाना) हवियों का बहन करते हुए, अर्थात् घरों में यज्ञों को विलुप्त न होने देते हुए (ग) (असमे) हमारी प्राप्ति के लिए, (वसवः) हे उत्तम निवास वाले गृहस्थो ! आप, (वसूनि) उत्तमोत्तम बातों को, उत्तम गुणों व धनों को (धत्त) धारण करो । (स्वाहा) इस सबके लिए तुम स्वार्थ त्याग करने वाले बनो ।।

मन्त्रार्थ से स्पष्ट है कि (१.) गृहस्थ को गृहस्थाश्रम का उद्देश्य सन्तान-निर्माण ही समझना चाहिए । इस सद्गृहस्थ को चाहिए कि (२.) गृहस्थ का पान-पोषण ठीक प्रकार से कर सके । (३.) यज्ञ की वृत्ति वाला हो । (४.) तथा प्रभु-प्राप्ति के उद्देश्य से उत्तम गुणों को धारण करने वाला बने ।

भावार्थः----(१.) हम गृहस्थ को यज्ञ समझें ।
(२.) इसमें गृहजनों के पालन-पोषण तथा यज्ञों के लिए धन कमाने वाले बनें तथा


(३.) उत्तम रत्नों को, रमणीय गुणों को धारण करें जिससे प्रभु को प्राप्त करने वाले बनें ।
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