Wednesday 16 March 2016

गोत्रावली जानें :

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गोत्र आदि पुरुष से प्रारम्भ होता है और उसी के नाम से गोत्र चलता है । यह मूल पुरुष उस गोत्र का प्रवर्तक होता है । इस वर्त्तमान सृष्टि का प्रथम और मूल पुरुष मनु को माना गया है । उसी से मानव-वंश का प्रारम्भ होता है । वैदिक काल के ऋषियों से गोत्र का प्रारम्भ होता है ।



अपने पूर्व पुरुषों का व्यक्ति दूसरों के सामने उद्घोष करता है, इसलिए गोत्र कहलाता है ।

गोत्र के पर्याय शब्द ये हैं---सन्तति, कुल, जनन, अभिजन, अन्वय, वंश, सन्तान आदि ।

"गोत्र" शब्द के अनेक अर्थ हैं---"गोत्र गवते शब्दायते अनेन गु करणे च--गोत्रम् --(उणादिसूत्र---4.1662)

(1.) गोत्रम् चाभिजनः कुलम् ।
(2.) गोत्रञ्च वंशपरम्पराप्रसिद्धम् । (विज्ञानेश्वर--गोत्रप्रवर-दर्पण)
(3.) गोत्रञ्च वंशपरम्पराप्रसिद्धमादिपुरुषम् । ब्राह्मणरूपम् । (शब्दकल्पद्रुम )

(4.) एतेषाम् यान्यपत्यानि तानि गोत्राणि मन्यन्ते । (धनञ्जय--धर्मप्रदीप)

(5.) गूयते अनेनेति गोत्रम् । गूङ् शब्दे से ष्ट्रन् प्रत्यय (उणादि---4.159)

(6.) गां त्रायते वा । त्रैङ् पालने से कः प्रत्यय (अष्टा.3.2.3)

(7.) गोत्रा भूगव्ययोर्गोत्रः शैले गोत्रं कुलाख्ययोः । संभावनीयबोधे च काननक्षेत्रवर्त्मसु --इति मेदिनी ।

(8.) गोत्रं क्षेत्रे अन्वये छत्रे संभाव्ये बोधवर्त्मनोः । वने नाम्नि च गोत्रो अद्रौ , गोत्रा भुवि गवां गणे । इति हैमः ।

कुछ विद्वानों के अनुसार गोत्र शब्द का अर्थ गोष्ठ है । सृष्टि के आदि में जितने कुटुम्बों (परिवारों) की गौएँ एक स्थल (गोष्ठ) में रहती थीं, उनका एक गोत्र होता था । परन्तु इसका सम्बन्ध प्रायः वंशपरम्परा से ही है ।

भारतवर्ष में लगभग 700 गोत्र हैं, उनमें से 200 गोत्र केवल ब्राह्मणों के हैं ।

वंश-परम्परा नष्ट होने पर कुछ गोत्र लुप्त भी हो जाते हैं । जिनके गोत्र लुप्त हो जाते हैं, उन्हें कश्यप गोत्र में मान लिया जाता है , क्योंकि कश्यप ऋषि सबके पूर्वज माने जाते हैं ।

गोत्रों के आदि पुरुष तो ऋषि ही होते हैं । वे ब्राह्मण के प्रतीक होते हैं, अतः सभी गोत्र ब्राह्मण से ही माने जाते हैं, और उसी से पौरोहित्य-परम्परा से क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों के भी गोत्र माने जाते हैं ।

मूल गोत्र के ऋषि ये थेः---

जमदग्निर्भरद्वाजो विश्वामित्रात्रिगौतमाः ।
वसिष्ठः काश्यपागस्त्या मुनयो गोत्रकारिणः ।।
एतेषां यान्यपत्यानि तानि गोत्राणि मन्यते ।।"

एक अन्य स्थल पर 24 गोत्रों का उल्लेख हुआ हैः---

शाण्डिल्यः काश्यपश्चैव वात्स्यः सावर्णकस्तथा ।
भरद्वाजो गौतमश्च सौकालीनस्तथापरः ।।
कल्किपञ्चाग्निवेश्यश्च कृष्णात्रेयवसिष्ठकौ ।
विश्वामित्रः कुशिश्च कौशिकश्च तथापरः ।।
धृतकौशिकमौद्गल्यौ आलम्यान पराशरः ।
सौपायनस्तथात्रिश्च वासुकी रोहितस्तथा ।।
वैयाघ्रपद्यकश्चैव जामदग्न्यस्तथापरः ।
चतुर्विंशतिर्वै गोत्रा कथिताः पूर्वपण्डितैः ।।



अग्रिम अंकों में हम आस्पद, प्रवर आदि के बारे में भी बतायेंगे ।


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