Thursday 29 June 2017

धर्म का चिन्तन

"नाहारं चिन्तयेत् प्राज्ञो धर्ममेकं हि चिन्तयेत् ।
आहारो हि मनुष्याणां जन्मना सह जायते ।।"
(चाणक्य-नीतिः--१२.१८)

अर्थः---बुद्धिमान् मनुष्य को अपने आहार , भोजन के सम्बन्ध में सोच-विचार नहीं करना चाहिए, उसे तो केवल धर्म का ही चिन्तन करना चाहिए, क्योंकि मनुष्य का आहार तो उसके जन्म के साथ ही उत्पन्न हो जाता है ।

विश्लेषणः---

आहार परमात्मा की ओर से प्राप्त होता है, इसलिए आहार की चिन्ता नहीं करनी चाहिए--

"अहं दाशेषु वि भजामि भोजनम् ।" (ऋग्वेदः---१०.४८.१)

आत्मसमर्पण करने वालों को भोजन मैं देता हूँ ।

"ईशावास्यमिदं सर्वम् ।" (यजुर्वेदः--४०.१)

इस चराचर जगत् को परमात्मा ने थामा हुआ है, धारण किया हुआ है । हे भक्त ! तू उस पर विश्वास कर । जिसने सारे ब्रह्माण्ड को धारण किया हुआ है, क्या वह तुझे धारण नहीं करेगा ?
सुनो----

"दाँत न थे तब दूध दियो, अब दाँत दिए तो का अन्न न दैहें ।
जीव बसे जल में थल में सबकी सुधि लेय सो तेरी भी लैहें ।।
काहे को सोच करे मन मूरख सोच करे कछु हाथ न ऐेहें ।
जान को देत अजान को देत, जहान को देत सो तोकू न दैहें ।।"

मनुष्य को धर्म का ही चिन्तन करना चाहिए---

"सुखार्थाः सर्वभूतानां मताः सर्वाः प्रवृत्तयः ।
सुखं च न विना धर्मात्तस्माद्धर्मपरो भवेत् ।।"
(शुक्रनीतिः--३.१)

सभी प्राणियों की किसी भी कार्य को करने की जितनी प्रवृत्तियाँ हैं, वे सभी आत्म-सुख की प्राप्ति के लिए होती है । सुख धर्म के विना नहीं मिलता, अतः मनुष्य को धर्मपरायण होना चाहिए ।

===============================
वेबसाइट---
www.vaidiksanskritk.com
www.shishusanskritam.com
वैदिक साहित्य की जानकारी प्राप्त करें---
www.facebook.com/vaidiksanskrit
www.facebook.com/shabdanu
संस्कृत नौकरियों के लिए---
www.facebook.com/sanskritnaukari
आयुर्वेद और हमारा जीवनः--
www.facebook.com/aayurvedjeevan
चाणक्य-नीति पढें---
www.facebook.com/chaanakyaneeti
लौकिक साहित्य पढें---
www.facebook.com/laukiksanskrit
आर्ष-साहित्य और आर्य विचारधारा के लिए
www.facebook.com/aarshdrishti
सामान्य ज्ञान प्राप्त करें---
www.facebook.com/jnanodaya
संस्कृत सीखें---
www.facebook.com/shishusanskritam
संस्कृत निबन्ध पढें----
www.facebook.com/girvanvani
संस्कृत काव्य का रसास्वादन करें---
www.facebook.com/kavyanzali
संस्कृत सूक्ति पढें---
www.facebook.com/suktisudha
संस्कृत की कहानियाँ पढें---
www.facebook.com/kathamanzari
संस्कृत में मनोरंजन--
www.facebook.com/patakshepa

No comments:

Post a Comment