Tuesday 27 June 2017

मीमांसा के विषय

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ऐसा माना जाता है कि मीमांसा के आदि व प्रथम प्रवक्ता जैमिनि है और उन्होंने ने ही मीमांसा शास्त्र के सिद्धान्त निश्चित किए हैं । प्रारम्भ में उन्होंने मीमांसा के १२ विषय निश्चित किए थे । इन्हें "द्वादश लक्षणी" कहा जाता है ।
इसके १२ विषय ये हैं--

(१.) धर्म-जिज्ञासा
(२.) कर्मभेद
(३.) शेषत्व
(४.) प्रयोज्य-प्रयोजक भाव
(५.) कर्मों में क्रम
(६.) अधिकार
(७.) सामान्य अतिदेश
(८.) विशेष अतिदेश
(९.) ऊह
(१०.) बाध
(११.) तन्त्र
(१२.) आवाप

(१.) धर्म-जिज्ञासाः---प्रमाण-लक्षण परिभाषा आदि,
(२.) कर्मभेदः--कर्म का प्रधान्य-अप्रधान्य एवं भेद-अभेद ।
(३.) शेषत्वः--शेष (अंग) शेषी (अंगी) विश्लेषण ।
(४.) प्रयोज्य-प्रयोजक भावः---नित्य नैमित्तिक कर्म विवेचन ।
(५.) कर्मों में क्रमः---यागानुष्ठान में कर्मों का क्रम ।
(६.) अधिकारः---यज्ञादि कर्मों का अधिकार ।
(७.) सामान्य अतिदेशः---सामान्य कर्मों के विधान का अन्य कर्मों में भी विधान ।
(८.) विशेष अतिदेशः---विशेष कर्मों का विधान का अन्य कर्मों में विधान ।
(९.) ऊहः---तर्क द्वारा मन्त्रों की प्रामाणिकता सिद्ध करना ।
(१०.) बाधः---प्रकृति याग के विधानों का विकृति याग में निषेध ।
(११.) तन्त्रः---एक कर्म द्वारा अनेकों के उपकार की प्रक्रिया ।
(१२.) आवापः---पृथक्-पृथक् कर्मों द्वारा अनेकों के उपकार की प्रक्रिया ।

पारिभाषिक शब्द होने के कारण यज्ञ एवं वेदों के मन्त्रार्थ के साथ इनका विशिष्ट सम्बन्ध है ।
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