Thursday 14 January 2016

!!!---: पशु-याग :---!!!

प्रारम्भिक काल में "पशु-याग" का क्या स्वरूप रहा होगा । यह आज ज्ञात नहीं है , पर आज भी समस्त देशव्यापीा कुछ संकेत ऐसे उपलब्ध हैं, जिनके आधार प्रारम्भिक काल के पशुयाग के वास्तविक स्वरूप की झाँकी सुझाए जाने में सहयोग मिल सकता है ।

शास्त्रीय पद्धति के अनुसार "दर्श" याग का अमावास्या के दिन अनुष्ठित किया जाता है । उसी के अन्तर्गत "पशुयाग" है । समस्त भारत में पशु सम्बन्धी एक प्रथा है---कृषि तथा कृषि-सम्बन्धी अन्य कार्यों में जिन पशुओं का उपयोग किया जाता है, उनको प्रतिमास अमावास्या के दिन पूर्ण विश्राम दिया जाता है । इतना ही नहीं, उस दिन उनसे कोई काम नहीं लिया जाता, प्रत्युत ऋतु के अनुकूल उन्हें स्नान कराया जाता है, प्रत्येक अङ्ग को मलकर, पानी से धूल-गोबर आदि धोकर साफ किया जाता है । सींग व खुरों को तेल से चुपड दिया जाता है । माथे, पार्श्वभाग व पुट्ठों को रंग से चित्रित किया है । कतिपय प्रान्तों में ग्राम की जनसंख्या के अनुसार एक या अनेक समूहों में पशुओं को सम्मिलित कर जुलूस निकाला जाता है या प्रदर्शन किया है ।

ये सब कार्य सर्वत्र एक समान किए जाते हों, ऐसा तो नहीं है । कहीं सब व कहीं कुछ कम रहते हैं, पर पूर्ण विश्राम सर्वत्र समान है । आज यान्त्रिक काल में यन्त्रों द्वारा कृषि किए जाने से इस प्रथा में कुछ ढील दिखाई देने लगी है , फिर भी कृषि जीवी परिवार में यदि बैल है तो इस प्रथा का आंशिक पालन अवश्य किया जाता है ।

यह विशेष ध्यान देने की बात है कि समस्त भारत में एक ही दिन अमावास्या इस कार्य के लिए निर्धारित है । क्या अमावास्या के दिन अनुष्ठित होने वाले "दर्श" याग के साथ तो इसका सम्बन्ध नहीं है । शास्त्रीय पद्धति के अनुसार जिसके अन्तर्गत पशुयाग का किया जाना सदा मान्य रहा है । कदाचित् कहा जा सकता है अमावास्या मास का अन्तिम दिन होने के कारण कृषि सम्बन्धी पशुओं को विश्राम के लिए निर्धारित किया गया हो । पर यह ऐकान्तिक हेतु प्रतीत नहीं होता , क्योंकि उत्तर भारत में पूर्णमासी के दिन महीना पूरा माना जाता है  और उसी के आधार पर महीनों की गणना होती है । पर ज्योतिष् शास्त्र के अनुसार मास की पूर्ति अमावास्या के दिन ही सर्वत्र मान्य है , जो प्राकृतिक स्थिति के सर्वथा अनुकूल है । चन्द्र का एक कला से बढना प्रारम्भ होना, पन्द्रह दिन में पूरा बढकर फिर एक-एक घटकर पन्द्रह दिन फिर वहीं आ जाना , यह अमावास्या के दिन महीना पूरा होना है और "दर्श" याग के साथ उसका अटूट सम्बन्ध है । समस्त भारत में अमावास्या के दिन समान रूप से कृषि सम्बन्धी पशुओं के पूर्ण विश्राम की अज्ञात काल से प्रचलित निरन्तर परम्परा किसी भी विचारक को इस तथ्य की ओर आकृष्ट होने के लिए बाध्य करती है, कि इसका सम्बन्ध प्राचीन कालिक पशु-याग से रहना सम्भव है ।

पशु-याग के स्वरूप पर आगे लिखा जाएगा । आप हमें ये बताएँ कि यह उपर्युक्त परम्परा किस-किस स्थान पर आज भी जारी है, ताकि एक अनुमान लगाया जा सके कि भारतवर्ष में यह प्राचीन प्रक्रिया जारी है । आप अपने विचार अवश्य लिखें ।

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