असन्तुष्टाः द्विजाः नष्टाः सन्तुष्टाश्च महीभृतः ।
सलज्जा गणिका नष्टा निर्लज्जाश्च कुलाङ्गनाः ।।
(चाणक्यनीतिः--८.१८)
अर्थः----असन्तोषी ब्राह्मण, सन्तोषी राजा, लज्जा करने वाली वेश्याएँ और लज्जा न करने वाली घर-परिवार, कुल की स्त्रियाँ ---ये सब नष्ट हो जाते हैं ।
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