Tuesday 16 June 2020

वैदिक ऋषिकाएं

!!!---: वैदिक  ऋषिकाएं :---!!!
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वेद मंत्रों के दर्शन करने वाले विद्वानों को ऋषि कहा जाता है । ऐसे अनेक विद्वान् हुए हैं जिन्होंने वेद मंत्रों का दर्शन किया है । इसी प्रकार से वेदों का दर्शन करने वाली स्त्रियां भी हुई है । जो ऋषिकाएं कही जाती थी । ऐसी कुछ ऋषिकाओं का वर्णन यहां पर प्रस्तुत है :----


गार्गी जनक की सभा में उपस्थित विद्वानों में से एक थीं। उनको वेदों का अच्छा ज्ञान था। उनके और महर्षि याज्ञवल्क्य के बीच हुए संवाद (बृहदारण्यक उपनिषद – 3.6) के प्रसंग से वर्णित है कि वह एक प्रभावशाली व्यक्तित्व की स्वामिनी थीं। गार्गी के प्रश्न ‘आसमान से ऊँचा और पृथ्वी से नीचे क्या है’ ने सभा में उपस्थित सभी लोगों को सोच में डाल दिया था।


मैत्रेयी को भारतीय विदुषियों का प्रतीक माना जाता है। वह एक वैदिक दार्शनिक थीं और उनको दर्शन में निपुणता प्राप्त थी। बृहदारण्यक उपनिषद (2.4.2–4 और 2.4.5) में उनके और ऋषि याज्ञवल्क्य के बीच हुआ एक संवाद हुआ है, जिसमे वह आत्मा और ब्रह्म के अंतर पर चर्चा करती हैं। माना जाता है कि मैत्रेयी ने तत्व पर गहन अध्ययन किया था। उस समय धर्म और शिक्षा, दोनों ही क्षेत्रों में मैत्रेयी को विशेष स्थान प्राप्त था। मैत्रेयी ऋषि याज्ञवल्क्य की पत्नी थी ।


लोपामुद्रा वैदिक काल की एक दार्शनिक थीं और महर्षि अगस्त्य की पत्नी थीं। ऋग्वेद की 179वीं सूक्त उनके और उनके पति के बीच हुए एक संवाद को दर्शाता है। पंचदशी के मन्त्रों से ले कर यज्ञ संपन कराने तक लोपामुद्रा, पारिवारिक जीवन का महत्त्व समझाने से लेकर ललित सहस्त्रनाम के प्रचार-प्रसार और महाभारत में लोपामुद्रा का नाम आता है।


राजा पॉलोम की पुत्री और इंद्र की पत्नी, शचि इंद्र के दरबार में मौजूद 7 मन्त्रिकाओं में से एक थीं। बुद्धिमती और शक्ति से संपन्न होने के कारण शचि को विशेषाधिकार प्राप्त था। कुछ ग्रंथों में इंद्र को शचिपति कहकर सम्बोधित किया जाना यह दर्शाता है कि वह उस समय एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व थीं। ऋग्वेद (ऋचा, 10-159) में एक सूक्त में शचि ने अपनी शक्तियों का वर्णन किया है ।


मंत्रादिका, यानि मन्त्रों में निपुण, होने के साथ ही घोषा को आध्यात्म और दर्शन का भी अच्छा ज्ञान था। ऋग्वेद के दसवें मंडल के दो सूक्त (39 और 40), जिनमें कुल चौदह-चौदह मन्त्र हैं, घोषा द्वारा कहे गये हैं। घोषा को वैदिक विज्ञान, जैसे मधु विद्या का भी ज्ञान था। यह उसने अश्विनीकुमारों से सीखी थी, जो उस समय के त्वचा विशेषज्ञ थे।


अपाला अत्रि मुनि की पुत्री थीं। ऋग्वेद में लिखे हुए आठवें मंडल के साथ 7 सूक्त (8.91) उनके द्वारा इंद्र से कही गयी प्रार्थना और वार्तालाप की हैं। प्रचलित कथाओं के अनुसार, अपाला अपनी बुद्धिमत्ता के कारण पूरे भारतभर में प्रसिद्ध थीं।

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